आत्मा मर गई है

 *मुर्दाड बनकर कब तक जियेंगे ???* 


मुर्दाड बनकर जीते है

यहाँ के लोग,

मरे हुए मन से जीते है

यहाँ के कुछ लोग।

अन्याय करनेवाले अत्याचारी

चाहे खुलेआम लाखों

अत्याचार करें,

आँखें बंद करके जीते है

यहाँ कुछ मुर्दाड लोग।

क्या इनकी आत्मा मर गई ?

या फिर मर गया है इनका

मन...?

चाहे लाठी से मारो अथवा

डंडे बरसावो,

इनकी मरी हुई आत्मा कभी

जागेगी नही।

अगर ऐसा ही माहौल बढता जायेगा तो...?

अधर्म बढेगा,अत्याचार बढेगा,

पाप का अंधेरा बढता जायेगा।

और सब तबाह हो जायेगा।

हैवानों की हैवानियत,

राक्षसों की राक्षसता,

अगर आँखें बंद करके

अनदेखी की ,

तो ऐसे मुर्दाड समाज को कौन

बचायेगा,कैसे बचायेगा ?

अत्याचार के खिलाफ

अंदर की आग,अंदर की ज्वाला

अगर मर गई और सभी

तमाशाई बन गये तो ऐसे,

अंध जनों को कौन बचायेगा ?

उन्हे बचाने के लिए,

कौन आगे आयेगा ?

कौन रहेगा बचाने वाला ?


ईश्वरी सिध्दांतों को उखाड फेंककर,

संस्कारों के असली धन को

दफनाकर,

परकीय संस्कृती को अपनाने वालों का हाल,

यही होगा,ऐसा ही होगा।


तो अब...कौन बचायेगा...?


हम पिछे पिछे हटते गये,

बारबार पलायन करते रहे,

बचाने वालों को ही उल्टा 

डंडों से पिटते गये,

आसुरों को बढावा देते रहे,

सदीयों से हम ऐसा ही करते रहे।


चुल्लू भर पाणी में डूब कर मरो,

ना कोई मोदी तुम्हें बचाने

आगे आयेगा और ना ही

ईश्वर तुम्हे बचा पायेगा।

और तुम्हारी उल्टी और विनाशकारी बुध्दी देखकर

ईश्वर भी तुमसे दूर 

भाग जायेगा।


कर्मदरीद्रो...

सडते रहो,

बँटते रहो,

कटते रहो,

मरते रहो,

अगली पिढी का भविष्य भी

बरबाद करते रहो,तबाह

करते रहो।


अन्याय, अत्याचार का ,

प्रतिशोध लेना हमारे अंदर 

है ही नही।

क्योंकी हमारी आत्मा ही 

मर गई है।

अगर हमारी आत्मा को ,

जगाने के लिए कोई महात्मा,

आयेगा भी तो हम,

उल्टा उसपर ही,

हैवानियत जैसा जुलूम

करते रहेंगे।

जो हमें बचाने के लिए आयेगा,

उसे ही हम तबाह करते रहेंगे।


तलवार लेकर हमें मारने 

के लिए कोई आयेगा,

तो हम भागम् भाग करते रहेंगे।

और हमें हैवानों से बचाने 

के लिए ,कोई लाठी लेकर आयेगा,

तो उसकी ही लाठी लेकर

बचाने वालों को ही पिटते रहेंगे।


ऐसा ही होता आया है ना ?

ऐसा ही हो रहा है ना ?

 *

तो...???

कौन हमें बचायेगा ?

क्या जमाना भी आ गया...?

हुश्श...


पश्चिम बंगाल के चुनाव का

इससे कोई भी लेनादेना

नही है।

हरी ओम् 


 *विनोदकुमार महाजन*

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