ईश्वर चाहिए या ऐश्वर्य
ईश्वर चाहिए या ऐश्वर्य ?
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किसी ने अगर मुझे की,
तुम्हें ईश्वर चाहिए या ऐश्वर्य ?
और शर्त ये है की दोनों मे से केवल एक ही चुनना है।
तो मैं बिना हिचकिचाहट के तुरंत उत्तर दूंगा मुझे ईश्वर ही चाहिए।
फिर आगे मुझे किसी ने पूछा की,अगर आपको ईश्वर ही चाहिए तो...इसके साथ में गरीबी,दुख - दर्द, पिडा,कष्ट होंगे
और दुसरी तरफ राजऐश्वर्य होगा...मगर वहाँ ईश्वर
नही होगा,और सभी सुखों की बरसात होगी...
तो आप किसे चुनेंगे...?
तो मैं फिर से बिना सोचे समझे,बिना एक पल विचार किए,झट से कहुंगा,फिरसे यही कहुंगा...
की,
मुझे केवल और केवल ईश्वर ही चाहिए।
अगर ईश्वर साथ में है मगर उसके साथ अनेक दुखदर्द, पिडा यातनाएं झेलनी पडेगी, जहर भी हजम करना पडेगा,
तो भी मुझे केवल और केवल ईश्वर ही चाहिए।
क्योंकी धन,वैभव, ऐश्वर्य, सुख तो दो दिन की माया है।मगर ईश्वर तो जनम जनम तक साथ रहनेवाला अलौकीक धन है।इसके मायने सभी सुख,प्रत्यक्ष सभी स्वर्गीय सुख भी य:किंचित होते है।
सही मायने में तो धन,वैभव तो मोहमाया का भुलभुलैय्या और फरेब है।
ईश्वर तो साक्षात अमृत होता है।
जिसको भी यह अमृत मिला...
उसका जीवन ही क्या अनेक जनम धन्य हो गये।
जिसे यह अमृत का कुंभ मिल गया...
उसके जैसा भाग्यवान कौन हो सकता है...?
और साक्षात अमृतपान की जिसे नशा चड गई...
उसका स्वर्गीय ईश्वरी आनंद का वर्णन कौन जाने ?
इसकी अनुभूति के लिए खुद अमृत पान ही करना पडता है।
और जिसके नशीब में अखंड अमृतपान होता है...उसके जैसा भाग्यवान कौन हो भी सकता है...?
और जिसे अमृतपान की नशा चढ गई उसे...
दो दिन की धन दौलत की नशा क्या मायने रखेगी ?
मगर, ईश्वर प्राप्ति भी आसान नही है भाईयों।पागलों की तरह ईश्वर प्राप्ति के लिए जनम जनम भटकना पडता है।तभी ईश्वरी कृपा,ईश्वरी प्रेम,ईश्वरी सानिध्य प्राप्त होता है।
और ईश्वर प्राप्ति के लिए तो सद्गुरु कृपा तो अनिर्वार्य ही है।सद्गुरु के कृपा बगैर, ईश्वरी कृपा तो असंभव ही है।
और पुर्वजन्म के प्रारब्ध अनुसार ही सद्गुरु की कृपा होती है।
इसीलिए ईश्वर चाहिए या ऐश्वर्य इस प्रश्न का केवल एक ही उत्तर है...
केवल और केवल ईश्वर...
इसे ही आत्मानुभूति कहते है।और आत्मानुभूति पाना कोई बच्चों का खेल नही है प्यारे।
भाईयों,
आपको क्या चाहिए ?
ईश्वर या ऐश्वर्य ?
प्रश्न आपके मन को पूछना है और उत्तर भी आपके मन को ही देना है।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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