आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा ???

 क्या यही वास्तव है देश का ???

क्या यही दुर्दैव है हमारा ???

क्या लालची लोगों ने ही अनेक सालों से,

देश, धर्म और संस्कृति को बरबाद करने में अहम् भुमिका निभाई है ???

और हाँ...

तो इसका उत्तर क्या है ???

हल क्या है ???

योग्य उत्तर की अपेक्षा


हमारे ही लोगों ने हमसे बैर किया

हमारे ही लोगों ने हमारे पैर खिंचे

हमारे ही लोगों ने हमें बदनाम किया

हमारे ही लोगों ने हमें बरबाद किया

हमारे ही लोगों ने हमारी टांग अडाई


हमारे ही लोगों ने धर्म और संस्कृति पर प्रहार किया


तो शिकायत 

कौन करें ?

कैसे करें ?

कहाँ करें ?


निचे की कहानी पडकर आत्मा तडप उठती है।

आखिर ऐसा क्यों ?

हमारे ही देश में हमारे ही लोगों ने

हमारे महापुरुषों को भी क्यों तडपाया ?


उत्तर तो देना पडेगा भाईयों


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन


👇👇👇

एक मित्र जो कुछ वर्षों तक हौंगकौंग में रहे, अपना अनुभव बता रहे थे। वहां करीब एक वर्ष बीतने पर उन्हें लगा कि वहां के लोग उनसे कुछ दूरी बनाए रखते हैं। किसी ने उन्हें अपने घर नहीं बुलाया। उन्हें यह बहुत अखर रहा था तब आखिर एक करीबी से उन्होंने पूछ ही लिया। थोडी टालमटोल करने के बाद उसने जो बताया उससे हमारे मित्र के तो होश ही उड गए।

उसने पूछा “२०० वर्ष राज करने के लिए कितने ब्रिटिश भारत में रहे?”

“१०,००० होंगे”

“तो फिर ३० करोड लोगों को यातनाएं किसने दी इतने साल राज करने के लिए? वे आपके अपने ही तो लोग थे न?



जनरल डायर ने जब “ *फायर*” कहा तब १३०० निहत्थे लोगों पर गोलियां *किसने दागी?* ब्रिटिश सेना तो वहां नहीं थी। *क्यों एक भी बंदूकघारी पीछे मुड कर जनरल डायर को नहीं मार पाया?*   आपके अपने ही लोग कुछ पैसे के लिए अपने ही लोगों को सदियों से मार रहे हैं। इस व्यवहार के लिए हम भारतीय लोगों से सख्त नफरत करते हैं...जहां तक संभव है हम भारतीयों से सरोकार नहीं रखते। जब ब्रिटिश हमारे देश में आए तब एक भी व्यक्ति उनकी सेना में भरती नहीं हुआ क्योंकि उसे अपने ही लोगों के विरुद्ध लडना गंवारा नहीं था।



यह हम दोगलों का कैरैक्टर है कि बिना सोचे समझे हम पूरी तरह बिकने के लिए तैयार रहते हैं। आज भी इस देश में यही चल रहा है। वह *किसान आंदोलन* हो या औरंगाबाद का नाम बदलने का विरोध हो या कोई और मुद्दा , हम राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में और खुद के फायदों वाली गतिविधियों में राष्ट्र हित को हमेशा दोयम स्थान देते हैं.... यह अंग्रेजों का दोष नहीं था। हमारा सारा इतिहास ऐसे किस्सों से भरा पडा है। अंग्रेजों ने हमारी इसी कमी को पहचाना और हमें कंगाल बनाकर छोडा।

*हम विचारों से दरिद्र, एकता से परे*

*मूर्खता से लबरेज हिंदुस्तानी  हर काल मे अपने ही से हारे हैं*🙏🏻

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