अगर मैं हिंदु ना होता

 अगर मैं

           हिंदु ना होता...

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बडा विचित्र लगता है ना भाईयों

यह पढकर...?

अगर मैं हिंदु ना होता


आजके लेख में हमारे हिंदुओं की वास्तविकता लिखने की कोशीश कर रहा हुं।

आशा करता हुं,आप के मत इससे विरूद्ध भी हो सकते है अथवा एकसमान भी हो सकते है।


सोचो,

अगर मैं हिंदु न होकर मदर तेरेसा होता और उसी विचार सरणी के अनुसार हजारो लेख लिखता 

तो....

मुझे क्या मिलता ?

संपूर्ण दुनिया में लोकप्रियता,

अफाट पैसा,

उच्च कोटी की देश में भी लोकप्रियता

तथा राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा अनेक पुरस्कार तथा हमारे देश में भी लोगों का अफाट प्यार...

है ना भाईयों ?

अगर मैं झाकीर नाईक होता तो मुझे क्या मिलता ?

उनके समाज द्वारा भयंकर लोकप्रियता, सर पर लेकर नाचना तथा प्रचंड धनप्राप्ती।


और अगर मैं हिंदु होकर हिंदु उत्थान के लिए दिनरात जी जान से कोशीश करता,हजारो लेख लिखता

तो....

मुझे क्या मिलता...?

विशेषतः मेरे ही समाज द्वारा ?


शायद,

उपहास,अपमान, अपयश,मानहानी, मानसिक उत्पीडन, नींदा,कुत्सित भाव...?

या लोकप्रियता ?

धन,मान,संन्मान, इज्जत, प्रतिष्ठा ?

या मनस्ताप ?


सोचो,

अगर आज भी एक सच्चा सत्पुरुष अथवा साधु,ईश्वर भक्त भगवे कपडे पहनकर गली मुहल्ले से गुजरता है तो उसे क्या मिलता है ?

जादा संन्मान या जादा अपमान ?

और वह भी हमारे ही हिंदु भाईयों द्वारा।

ऐसा क्यों ?

अनेक चौकों में खडे हुए राष्ट्र द्रोही, धर्म द्रोही शक्तियों के झूंड और उसी द्वारा अनेक साधु महात्माओं को भला - बूरा कहके उसे बिना सोचे समझे,अपमानित करना...

ठीक ऐसा ही होता है ना...?

क्यों ?

आखिर क्यों ?

मदर तेरेसा को मान,संन्मान, पुरस्कार।

और हमारी उपेक्षा ?हमारे महात्माओं की उपेक्षा ?

हमारे देवीदेवताओं की उपेक्षा,विडंबना,मजाक।

हमारे ही गली मोहल्ले में हमारे ही महापुरूषों की अवहेलना।

जो भी बडे आनंद से धर्म कार्य कर रहे है उसका भी मजाक उडाना,उसे अपमानित करना,उसके बारे में गलत सोचना तथा गलत शब्दों का प्रयोग करना तथा हमारे महापुरूषों को बारबार हमारे ही लोगों द्वारा प्रताडित,अपमानित करना।

यही होता आया है,और आज भी यही होता है।

क्यों...?

यह नजारा मैंने मेरे आँखों से अनेक बार देखा है।

जब कोई भगवा धारी रास्ते से गुजरता है,तो पागल कुत्ते जैसे कुछ लोग ,झूंड बनाकर ऐसे साधु महात्माओं को प्रताडित करते है।

खून खौलता है मेरा ऐसा दृष्य देखकर और विशेषता हमारे ही लोगों द्वारा देखकर।

और विशेष बात यह है की हमारा समाज भी मूक दर्शक बनकर यह दृष्य देखता है..तमाशा समझकर।

किसी का खून नही खौलता है अथवा इसका विरोध भी कोई नही करता है।


क्यों ? हमारी आत्मा मर गई ?हम जिंदा लाशें बन गये ?


अब दूसरा मुद्दा...

जब एम.एफ.हुसैन हमारे देवीदेवताओं को बदनाम कर रहा था तो हमारा समाज निद्रीस्त क्यों था ?

हुसैन का जमकर विरोध क्यों नही करता था ?

कश्मीर में पंडितों के नाम पे हिंदुओं पर अनन्वीत अत्याचार हो रहे थे तब संपूर्ण देश निद्रीस्त क्यों था ?

मिडिया वाले,सरकार, पुलिस वाले मौन क्यों थे ?

इतना भयानक, भयंकर अत्याचार दिनदहाड़े हो रहा है और फिर भी इसका विरोध तक नही किया जाता है,

ऐसा क्यों ?

हमारा आत्मतेज, आत्मसंम्मान, आत्मचेतना मर गये है ?

हमारे धर्म पर हो रहे अत्याचार देखकर भी हम उसे आज भी अनदेखा क्यों करते है ?

क्या हमारा मन ही मर गया है ?

क्या हमारी आत्मा ही मर गई है ?


अगर ना,

तो आज के बाद ना ही कोई हमारे धर्म को,देवीदेवताओं को,महापुरुषों को,साधुसंतों को,हमारे आदर्श सिध्दांतों को बदनाम करेगा।

और ऐसी कोशिश भी देश के किसी कोने में की जायेगी, तो उसे सामुहिक शक्ति द्वारा तुरंत कठोर दंडित करना अनिर्वार्य रहेगा।


और अगर हाँ,

हमारी आत्मा ही मर गई है

हमें हमारे आदर्शों का,महापुरुषों का अपमान सहने की आदत सी हो गई है...

तो अब हमें यह आदत बदलनी होगी।

बदलनी ही होगी।


और इसके लिए नव संजीवनी का छिडकाव करके,मरे हुए समाज को,व्यक्तीयों को,जगाना ही पडेगा।हर एक का रोम रोम जगाना पडेगा।हर एक को रामभक्त, ईश्वर भक्त बनाना पडेगा।

हर घर में जाकर,हर एक की आत्मचेतना जगानी पडेगी।

और यह कार्य भी आगे आकर हम सभी को करना ही है।

हमारे धर्म जागृती का कार्य करनेवालों को हमें यथासंभव सहयोग करना ही है।


तभी संपूर्ण देश का माहौल बदलेगा।अधर्मियों पर अंकुश लगेगा।

विशेषता जब हमारे ही कुछ गद्दार, जयचंद ही हमारे कार्यों में बाधाएं डालने की कोशिश कर रहे है तो उनको भी बहिष्कृत करके,सबक सिखानी पडेगी।

अधर्मी तथा देशद्रोही शक्तीयों को सामुहिक, सामाजिक बहिष्कार द्वारा उसे समाज से अलग करना ही होगा।


तभी सत्य जितेगा।

तभी ईश्वरी सिध्दांतों की जयजयकार होगी।


अगर मंजूर है तो ऐसे अनेक समाज जागृती के लेख समाज जागृती के लिए आगे भेजते रहो।अनेक मार्गों से समाज जागृती का अभियान हम कानूनी तौर पर आरंभ करेंगे तो...

जीत निश्चित हमारी ही है।


सत्य की जीत के लिए आगे बढो।

हर एक का मन जगाते चलो।

हर एक का आत्मचैतन्य जगाते चलो।

ज्योत से ज्योत जगाते चलो।

अधर्म का अंधियारा मिटाते चलो।


नये उजाले की ओर बढते चलो।


हरी ओम्

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विनोदकुमार महाजन

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