सुर्य को जल क्यों चढाते है....
सूर्य अर्घ्य दान वैज्ञानिक रहस्य ।
जिस समय हम सूर्य को अर्घ्य दान देते हैं उस समय जल की धारा पृथ्वी (या जल) पर पड़ती है। सामने से सूर्य की किरणें उस अर्ध्य धारा के जल पर पड़कर उसके अन्दर से पास करके (बेध करके) हमारे ऊपर तथा सामने आंखों पर पड़ती हैं।
उससे हमारी नेत्र ज्योति बढ़ती है तथा नेत्रों के रोग दूर होते हैं।
इसमें वैज्ञानिक रहस्य यह है कि सूर्य संसार के नेत्र हैं, हमारे नेत्रों में भी सूर्य के तेज का ही प्रकाश है। सूर्य में सातों रंग होते हैं, विज्ञान से यह सिद्ध है कि जिस वस्तु पर सूर्य की सातों किरणें पड़कर वापस नहीं लौटती उस वस्तु का रंग काला होता है, उसीमें किरणें प्रवेश कर जाती हैं और जहां से सारी किरणें वापस चली जाती हैं उसका रंग सफेद होता है।
हमारी आंख की काली पूतरी में सूर्य की सारी किरणें जल के बीच से पास होकर (बेधकर) जल से उत्पन्न विद्युत शक्ति का और भी वेग तथा प्रभाव लेकर प्रवेश कर जाती हैं और अपनी जीवनदायिनी पोषण शक्ति प्रदानकरती हैं। जल धारा के बीच में से किरणों का आना एक विशेष लाभदायक विद्युत्-शक्ति को उत्पन्न करके लाभ पहुंचाता है और तत्सम्बन्धी सारी कमी को पूरा करता है।
सूर्य स्नान वैसे भी प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत ही लाभ-दायक बताया गया है। हमारी इस धार्मिक क्रिया में नित्य ही सूर्य स्नान का वह फल तथा लाभ अनायास ही प्राप्त हो जाता है। सूर्य स्नान से राजयक्ष्मा आदि भयंकर रोगों के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। सूर्य की रश्मियों से चिकित्सा भी की जाती है । सनातन धर्म में सन्ध्या के साथ सूर्य की आराधना बताई गई है। कहा गया है-
'ऋषयो दीर्घ सन्ध्यत्वाद् दीर्घमायुरवाप्नुयुः ।
प्रज्ञां यशश्च कीर्ति च ब्रह्मवर्चसमेव च ॥
(मनु० ४।६४)
अर्थात् ऋषियों ने दीर्घ काल तक संध्या करके दीर्घ आयु, बुद्धि, यश कीर्ति तथा ब्रह्मचर्य की शक्ति को प्राप्त किया सूर्य भगवान् , सविता देवता हमारी बुद्धि के प्रेरक हैं-
'धियो यो नः प्रचोदयात्'
गायत्री मन्त्र में आता ही है। वेद में कहा गया है-
'सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च'
(यजु०७।४२)
अर्थात् सूर्य स्थावर जंगम पदार्थो का आत्मा है। सूर्य
भगवान के प्रकाश से ही सारा जगत् प्रकाशित तथा अनुप्राणित होकर कार्यशील होता है। अत: धार्मिक दृष्टि से यदि हम प्राण, तेज तथा बुद्धि के अधिष्ठाता तथा प्रेरक सूर्य भगवान की आराधना कर के अर्ध्य दान करें तो उचित ही है और इसमें हमारा लाभ ही होता है ।
इस मन्त्र से अर्घ्य दान करना चाहिये:-
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजो राशि जगत्पते ।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्घ दिवाकरः ।।
अर्थात् हे सहस्र किरणों वाले, तेज की राशि, जगत् के स्वामी सूर्य भगवान मेरे ऊपर कृपा कीजिये और भक्ति के द्वारा प्रदान किया हुआ यह अर्ध्य स्वीकार कीजिये।
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सत्य से जुडे
सत्य सनातन से जुडे
ईश्वर से जुडे
ईश्वरी सिध्दांतों से जुडे
हमारे मुल से जुडे
जब हमारी जडें मजबूत होंगी तो विश्व के कोने कोने में हमारे सत्य सनातन संस्कृति का वटवृक्ष फिरसे बहरेगा
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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