अपराध क्यों होते है...?
इंन्सान,अपराधी क्यों होता है...? ( एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण )
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अपराध।
समाज की भयंकर बडी समस्या।
अगर कोई साधारण या बडा अपराधी समाज में होता है तो समाज को भयंकर कष्ट उठाने पडते है,भयंकर पिडा होती है समाज में।
मगर इंन्सान आखिर अपराधी क्यों होता है अथवा अपराध क्यों करता है..।इसका हम आजके लेख में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते है।
इंन्सान आखिर अपराधी क्यों होता है ?
एक तो पेट की भूक भयंकर होती है।और जब जठराग्नि प्रदिप्त होता है और भूक की भयंकर आग परेशान करती है तो वह इंन्सान अपनी भूक शांत करने के लिए खाना तलाशता है।और यह स्वाभाविक भी है।
मगर अगर उसे खाना तुरंत उपलब्ध हो तो उसकी क्षुधा शांत हो जाती है।
मगर अगर खाना भी अच्छे तरीकों से,आसानी से नही मिलता है,भूका कंगाल रहने की नौबत आती है,चार चार दिनों तक पेट में भूक की आग सताती रहती है तो ऐसा व्यक्ति खाना प्राप्त करने के लिए, जो सहज उपलब्ध होना चाहिए था,न उपलब्ध होने के कारण,खाना हासिल करने के लिए आक्रामक हो जाता है।और फिर भी खाना उपलब्ध नही होता है तो वही आदमी पेट की भूक शांत करने के लिए, हिंसक भी हो जाता है।और अगर ऐसी स्थिती में अगर कोई उस व्यक्ति का मानसिक उत्पीड़न करता है,उसको गाली गलौच करता है,उसे प्रताडित - अपमानित करता है...
तो....?
इंन्सान चाहे कितना भी समझदार, ज्ञानी भी क्यों न हो...
भूक की आग के सामने हतबल हो ही जाता है...
और आरंभ हो जाता है भयंकर संघर्ष।
अगर बचपन में ही किसिको ऐसा संघर्ष करने की नौबत आती है तो...
वह व्यक्ति भेडिया भी बन सकता है....
कभी कभी पागल भी बन सकता है...
अथवा ऐसे भयंकर संघर्ष में आत्मग्लानि में आकर आत्महत्या भी कर सकता है।
जरा सोचिए, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किजिए,
अगर किसी छोटे बच्चे को अगर उसके माता पिता ही,उसको खाना देने के लिए तडपायेंगे,उसे भूका कंगाल रखेंगे...
और.....❓❓
खुद ऐशोआराम की जिंदगी जियेंगे...
तो....❓❓❓
उस छोटेसे निष्पाप, निरागस बच्चे की मानसिक स्थिति कैसी होगी ?
पेट की आग बुझाने के लिए वह क्या करेगा ?
अगर चिडिय़ा ही अपने छोटेसे पिल्ले को दूर दूर से दाणापानी ले आकर उसके छोटेसे चोंच में भरने के बजाय,
उस पिल्ले को भूक के मारे तडपायेगी और उपर से खुद भरपेट दाणापानी खायेगी...
तो...
उस बेचारे पिल्ले की क्या दुर्दशा होगी...
जरा सोचो।
और अगर ऐसा कोई भूका बच्चा समाज में है...
और समाज, स्वकीय भी उस बच्चे को मानसिक पीडाएं देगी तो...
उस बच्चे की मानसिकता कैसी होगी।
भाईयों, आज भी हमारे समाज में ऐसे अनेक लोग है जो अपने निष्पाप बच्चों के पंख उगने से पहले ही काट देते है।उसको अपाहिज बना देते है।
तो भाईयों,
सोचो,
ऐसे बच्चे अगर अपराधी भी बन गए तो दोष किसका ?
माँ बाप का ?
समाज का ?
सामाजिक व्यवस्था का ?
और ऐसे भूके कंगाल बच्चों को समाज में कही आश्रय मिलने के बजाए वह बेचारा उपेक्षित हो जाए,निरिधार, निराश्रित हो जाए,अनाथ हो जाए...
प्रेम के एक एक शब्द के लिए भी तरस जाए...
तो दोष किसका ?
समाज व्यवस्था का ?
नियती का ?
या फिर नशीब का ?
और आगे चलकर वही बच्चा अगर भयंकर अपराधी बनकर समाज का जीना मुश्किल कर दें
अथवा मानसिक विकृत बनकर सभी को पिडा दें
तो....
आखिर दोष किसका...
यह लेख विशेषत : बचपन में ही नियती ने जिनके पंख काटे है और उसे अपाहिज बनाया है...
दिनदुखी बनकर समाज में रहने के लिए मजबूर किया है...
और फिर भी सच्चाई, अच्छाई, नेकी,ईश्वरी सिध्दांत न छोडकर,सदैव आगे बढने की कोशिश कर रहे है...तथा समाज को फिर से सुसंस्कारित तथा वैभवशाली बनाने का सपना देख रहे है,अथवा ऐसी कोशिश कर रहे है...
ऐसे दिन - दुखी,निरिधार, निराश्रित, अनाथ बच्चों को यह मेरा लेख समर्पित है।
ईश्वर ऐसे बच्चों को हमेशा सहायता करें तथा उनके जीवन में सुखों की बरसात हो और एक नया प्रकाश मान जीवन ईश्वर उनको प्रदान करें
ऐसी मेरे प्रभु के कोमल चरण कमलों पर मेरी विनम्र प्रार्थना।
अब देखते है दूसरा पैलू।
लालच।
भयंकर लालच अनेक लोगों को,व्यक्ति को अपराधी बनाता है।करोड़ों का धन प्राप्त होनेपर भी जिसका मन अशांत रहता है,ऐसे व्यक्ति हमेशा समाज में खलबली मचाते रहते है।भ्रष्टाचार करते रहते है।समाज को येन केन प्रकारेण लुटते रहते है।कभी काला धन इकठ्ठा करके अथवा अभी सफेद काँलर वाला बनकर।
लालच ही अशांति का फलित है।और उसके मन की सदोदित की अशांति ही सामाजिक अपराध करने के लिए अग्रसर रहती है।
और ऐसे भयंकर लालची लोगों को कठोर कानून बनाकर दंडित करना ही समाज हित तथा समाज स्वास्थ्य के लिए हितकारक होता है।क्योंकि लालची लोगों पर योग्य समय पर अंकुश नही लगाया तो ऐसे लोग समाज में तबाही भी मचा देते है
विशेषता बूरे मार्गों से,समाज को लूटकर काला धन कमाने वाले।ऐसे लोगों की ना धन की भूक कभी शांत होती है...ना लालच।
अरबों खरबों का धन मिलने पर भी ऐसी पापात्माएं सदैव अशांत ही रहती है।और समाज को,गरीब को भी नोचने का इनका काम अखंड चालू रहता है।
और इसे ही जघन्य अपराध और अपराधी कहते है।
इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण यही है की,
आसुरिक सिध्दांतों पर चलनेवाले, दुर्योधनी व्यक्ति।और उन्हींके अराजकता से होनेवाली भयंकर सामाजिक हानी।
ईश्वरी सिध्दांतों पर चलने वाला व्यक्ति लालची नही होता है।और ऐसे ही व्यक्ति समाज में नवचैतन्य की लहर निर्माण करने में तथा समाज को चौतरफा प्रगति की ओर ले जाने में सक्षम होते है।
और यही सुर असुर का द्वंद्व सृष्टि से आरंभ से लेकर अंत तक चलता ही रहेगा।
और यह दो विरूद्ध शक्तीयों का निर्माण तथा संघर्ष भी ईश्वर की ही लिला है।
अब रही छोटे छोटे अपराधियों की।कुछ कारण वश ऐसे व्यक्ति सच्चाई का रास्ता भूलकर,अपराधी बनकर भटक गये है,अगर उन्हें समाज में समय समय पर यथायोग्य मार्गदर्शन मिलें,उनका जीवन जिने का रास्ता आसान किया जाए,तो ऐसे छोटे अपराध करने की धारणा रखने वाले भी समाज विघातक कार्यों को भूलकर समाज विधायक कार्यों के लिए अपना जीवन समर्पित कर सकते है।
जरूरत है उनको भी सँवरने का मौका देने की।उनको भी मानसिक आधार देने की।उनको भी सामाजिक स्थैर्य देने की।
यह मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का उद्दीष्ट अथवा मकसद यह बिल्कुल नही है की अपराधियों का समर्थन करना।बल्कि उनकी प्राप्त मानसिक परिस्थितियों में ऐसे व्यक्तियों को सहारा मिलकर उसका जीवन सुधार जाए तथा उसके जीवन का सार्थक हो।इसी उद्देश्य से लेखन।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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