मेरे आण्णा
देह त्यागने के बाद भी जिन्होंने मुझे गायत्री मंत्र दिया,
देह त्यागने के बाद भी बारबार मुझे दर्शन देकर मार्गदर्शन किया,
मुझे अहोरात्र प्रेम का अमृत कुंभ देकर,
भयंकर दुनियादारी में और चौफेर भयानक आग जैसी गृहदशा तथा मुसिबतों की घडी में मेरी रक्षा की तथा ज्ञानामृत दिया,
वैश्विक कार्य के लिए मुझे सक्षम बनाया,
ऐसे मेरे सद्गुरु
आण्णा के पावन तथा कोमल चरणकमलों पर,
मेरा सर्वस्व,मेरा संपूर्ण जीवन समर्पित है।
आज भी मैं शून्य ही हुं और आगे भी शून्य ही रहूंगा।
मेरा ना यह तन है,ना धन है,ना मन है,और ना ही मेरा यह आत्मा भी है।
जो भी है सबकुछ मेरे
आण्णा का ही है।
आदेश !
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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