योग

 *योग क्या है ? योग के अनुभव , योग करने के लाभ*


योग प्राचीन हिन्दू सभ्यता का वह गौरवमय हिस्सा है जो अनादि काल से मनुष्य के मन और शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ आध्यात्म की ओर अग्रसर करता है | योग का अर्थ ” जोड़ ”  है जो मनुष्य के शरीर, मन और मष्तिष्क को एक साथ और एक जगह केन्द्रित करता है | योग के माध्यम से मनुष्य का शरीर , मस्तिष्क और भावनाओं में समन्वय स्थापित होता है | कुछ लोगों की नजर में योग सिर्फ शरीर को लाभ पहुँचाने वाली ऐसी क्रिया है जिसमें मानव शरीर को विभिन्न आसन और मुद्राओं (शरीर को मोड़कर या खींचकर) के माध्यम द्वारा लाभ पहुँचाया जाता है | किन्तु वे इस सत्य से अनभिज्ञ है कि यह तो योग की सिर्फ शुरुआत भर है | योग का प्रमुख कार्य तो इसके बाद शुरू होता है |


योग सिर्फ एक आसन या ऐसी क्रिया नहीं जो मानव शरीर को केवल स्वस्थ रखने का कार्य करती हो, योग का मूल कार्य आध्यात्म की उस ऊचाई को प्राप्त करना है जहाँ मनुष्य इन सांसारिक बन्धनों के भार से मुक्त होने लगता है | उस परमपिता परमेश्वर को जानने का उसे महसूस करने का एकमात्र द्वार योग है | योग के अंतर्गत ही ध्यान की उस चरम सीमा को भी सम्मिलित किया जाता है जो एक लम्बे समय तक अभ्यास के बाद प्राप्त होती है |


योग के अनुभव :


योग के पहला अनुभव शारीरिक अनुभव है | जिसमें कुछ समय के बाद ही जातक महसूस करने लगता है | योग के कुछ दिनों के अभ्यास से ही जातक रोगों से छुटकारा पाकर अपने शरीर में बदलाव स्वयं महसूस करने लगता है | योग का पहला कार्य मानव शरीर को स्वस्थ बनाकर ऊर्जावान बनाना है |


योग का दूसरा अनुभव मस्तिष्क और विचारों ( भावनाओं ) पर दिखाई देता है | मानव मस्तिष्क से तनाव, चिंता, अवसाद , नकारात्मक भाव इन सभी मानसिक व्याधियों पर काबू पाने में योग प्रभावी सिद्ध होता है |


योग का तीसरा अनुभव मनुष्य को आध्यात्म की ओर ले जाता है | सांसारिक बन्धनों और चिन्ताओं से मुक्ति प्रदान कर योग उस परम इकाई की और अग्रसर करता है जहाँ सिर्फ आनंद ही आनंद है |


योग के प्रकार :-


प्रमुख रूप से योग के 4 प्रकार है : –  राज योग , कर्म योग , भक्ति योग , ज्ञान योग


राज योग :-


इस योग को अष्टांग योग भी कहते है इसमें आठ अंग है जो इस प्रकार है : यम( शपथ लेना ) , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार( इन्द्रियों पर नियंत्रण), धारण, एकाग्रता और समाधि | राज योग में आसन योग को अधिक स्थान दिया जाता है क्योंकि यह क्रिया राज योग की प्राथमिक क्रिया होने के साथ-साथ सरल भी है |


कर्म योग :-


कर्म योग में सेवा भाव निहित है | इस योग के अनुरूप आज वर्तमान में जो हम पा रहे है जो हमें मिला है वह हमारे भूतकाल के कर्मो का फल है | इसलिए यदि एक जातक अपने भविष्य को अच्छा बनाना चाहता है तो उसे वर्तमान समय में ऐसे कर्म करने होंगे जिससे भविष्य काल शुभ फल प्रदान करने वाला बने | कर्म योग स्वयं के कार्य पूर्ण करने से नहीं बल्कि दूसरों की सेवा करने से बनता है |


भक्ति योग :-


भक्ति योग उस परमपिता परमेश्वर इकाई की और ध्यान केन्द्रित करने का वर्णन करता है जो इस संसार के रचियता है | भक्ति योग में भावनाओं को भक्ति की ओर केन्द्रित करने के विषय में बताया गया है |


ज्ञान योग :-


योग की सबसे कठिन शाखा ज्ञान योग है जिसमें बुद्धि को विकसित किया जाता है | ज्ञान योग का मुख्य कार्य जातक को ग्रंथों के अध्ययन द्वारा व मौखिक रूप से बुद्धि को ज्ञान के मार्ग की और अग्रसर करना है |


योग करने के लाभ :-


योग मानव जीवन को शारीरिक , मानसिक व आध्यात्मिक सभी प्रकार से लाभान्वित करता है | आइये जानते है योग से होने वाले लाभ कौन-कौन से है :-


योग से सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम स्वतः ही हो जाता है | योग की विभिन्न क्रियाएँ अलग-अलग रूप से शरीर को बाहर से व अन्दर से स्वस्थ करती है |


सभी प्रकार की मानसिक व्याधियाँ जैसे : चिंता, तनाव व नकारात्मक विचार ये सभी योग द्वारा दूर की जा सकती है | योग शरीर को उर्जावान बनाने के साथ-साथ बुद्धि को बल भी प्रदान करता है |


नियमित योग अभ्यास रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है | ऐसे व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत हो जाती है व मौसम के अनुसार आने वाली सर्दी, जुकाम व बुखार जैसी बीमारियाँ दूर रहती है |


योग करने वाला व्यक्ति सदैव प्रसन्नचित रहता है ऐसा व्यक्ति समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है व विकट परिस्तिथियों में भी डटकर मुकाबला करता है |


नियमित योग करने वाला व्यक्ति बुरी लत व बुरी संगतों से दूर रहता है व आध्यात्म की ओर अग्रसर होकर अपने भविष्य को सुनहरा बनाता है |


प्राणायाम भी योग का ही अंग है जिसके द्वारा मानव शरीर के लीवर, पेट, फेफड़े, ह्रदय, गुर्दे आदि आन्तरिक अंगों को उपयुक्त मात्रा में ओक्सिजन मिलती है जिससे लम्बे समय तक ये स्वस्थ रहते है |


योग द्वारा सम्पूर्ण शरीर को लाभ प्राप्त होता है | किसी भी असाध्य रोग से लड़ने के लिए व रोगों से मुक्ति पाने के लिए योग किसी वरदान से कम नहीं |


विनोदकुमार महाजन

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