मैं सिध्द योगी हुं
मैं सिध्दयोगी हुं।
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मैं अनादी हुं,मैं अनंत हुं।
मैं सिध्द हुं,मैं सिध्दयोगी भी हुं।
मैं साकार हुं,मैं निराकार भी हुं।
मैं ब्रम्हज्ञानी हुं,मैं आत्मज्ञानी भी हुं।
सभी सजीवों में मैं हुं।
चराचर में भी मैं ही हुं।
सो अहम्...अहम् ब्रम्हास्मी।
मैं सभी में हुं और सभी
मुझमें भी है।
मैं अनादी हुं,मैं
अनंत हुं।मैं योगी हुं।
मैं सिध्दयोगी भी हुं।
मैं ही हरी हुं,मैं ही
हर भी हुं।
पंचमहाभूत भी मैं ही हुं।
सजीव निर्जीवों में
बसनेवाला मैं ही हुं।
मैं द्वैत हुं,अद्वैत भी
मैं ही हुं।
मैं पुर्ण ब्रम्ह भी हुं।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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