विश्वास, श्रद्धा और प्रेम

 विश्वास, श्रद्धा और प्रेम।

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जहाँ विश्वास, श्रद्धा और प्रेम होता है,वहाँपर निश्चित रूप से पावित्र्य होता है।और जहाँ पावित्र्य होता है,वहाँपर आत्मशुध्दी होती है।और जहाँ आत्मशुध्दी होती है,वहाँ ईश्वरी कृपा होती है।

श्रद्धा, विश्वास और प्रेम के बिना, सद्गुरु कृपा भी नही होती है।और सद्गुरु कृपा के बिना ईश्वरी कृपा,बृम्हज्ञान प्राप्ति भी नही हो सकती।

षट्चक्र भेदन में भी यह महत्त्वपूर्ण होता है।

अहंकार शून्यता,संपूर्ण आज्ञाधारकपण तथा संपूर्ण समर्पित भाव ही,साधक को उच्च आत्मानुभूति और आत्मशुद्धि तक ले जाते है।

जहां पर अहंकार आता है,मेरा-तेरा भाव शुरु हो जाता है,वहाँ झगडा, संघर्ष शुरू ही होता है।

फिर घर घर में पैसा,संपत्ति, जायदाद का भयंकर विनाषकारी झगड़ा भी आरंभ होता है।

अविश्वास, प्रेम, श्रध्दा के अभाव से संपूर्ण रिश्ता-नाता खतम हो जाता है।जो आज लगभग हर घर में,घर घर में दिखाई दे रहा है।और इसकी वजह से कुटुंब व्यवस्था ही संकट में आ गई है।संस्कारों का अभाव और संस्कृति के प्रति नितदिन बढती भयंकर उदासीनता, यही भी झगडे का कारण आज बन रहा है।

रिश्ते-नातों में तो एक दुसरे पर अतुट विश्वास, श्रध्दा और प्रेम तो चाहिए ही।


सज्जन गड निवासी रामदास स्वामीजी के एक शिष्य कल्याण स्वामी (जिन्होंने रामदास स्वामी के आदेश पर मेरे सर पर हाथ रखा है) अपनी सद्गुरु इच्छा के लिए हमेशा जान की भी कभी पर्वा नही करते थे।

शेगांव के गजानन महाराज के एक भक्त ने जिसे महारोग (कुष्ठरोग ) था,गजानन महाराज की थुकी का उसने मल्हम बनाकर अपने पूरे शरीर को लगाया था।उसका गजानन महाराज के प्रति इतना विश्वास, प्रेम और श्रद्धा थी की,उस मल्हम से महारोग(कुष्ठरोग )तुरंत खतम हुवा था।

ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे।

( शेगांव के ही गजानन महाराज जी ने मेरे सर पर हाथ रखकर

,"तु विश्व में बहुत बडा नाम कमायेगा,"

ऐसा आशिर्वाद दिया है,यह झूठ थोडे ही होगा,हाँ प्रचिती के लिए थोडा समय जरूर लगेगा।)


तो भाईयों, अगर जीवन में कुछ हासिल करना है,कुछ पाना है,नाम-ईज्जत-पैसा-प्रतिष्ठा चाहिए तो,

आत्मविश्वास, कठोर संघर्ष और सद्गुरु तथा ईश्वर के प्रति अत्यंत विश्वास, प्रेम और श्रद्धा तो चाहिए ही।

और कुटुंब के हर सदस्य में भी ऐसे ईश्वरी गुण होना अती आवश्यक है।तभी समाज में क्रांति की लहर आयेगी, और मनुष्य समुह सत्ययुग की ओर बढता जायेगा।

आज के ऐसे भयंकर घोर कलियुग में,सचमुच में,रिश्ते -नातों में,आपस में उच्च कोटि का विश्वास, प्रेम और श्रद्धा की अपेक्षा करना उचित होगा ?आज इसी वजह से रिश्ते-नाते समाप्ति की ओर बढ रहे है,और समाज भयंकर अंधकार मय गहरे गर्ते में फँसता जा रहा है।

मेरे इस लेख पर सभी पाठक,जरूर चिंतन-मनन करें।और हो सके तो,मुझपर भी,विश्वास, प्रेम और श्रद्धा का ईश्वरी नाता बनाने की जरूर कोशिश करें।

( किसी को सख्ती नही है,मर्जी अपनी अपनी।)


हरी ओम।

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आप सभी का सदैव कल्याण चिंतने वाला,


विनोदकुमार महाजन।

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