गहरी साजिश

 सर से उपर से पाणी बह रहा है।

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खतरे की घंटी केवल बजी ही नही है तो,

पाणी सर से उपर से ही बह रहा है।

अब सावधान भी क्या और कैसे होंगे ?

बहुत गहरी चाल चली गई।

सत्य को समाप्त करने के लिए जमीन के निचे से भयंकर षड्यंत्र रचे गये।

और हम ???

दिनरात गहरी निंद में सोते रहे।

या फिर भाईचारा निभाते रहे ?

या फिर फ्रि के लालच में खुद की आत्मा या आत्मसंम्मान बेचते रहे ?

या फिर गद्दार, बेईमान बनकर अपनों को ही समाप्त करने का षड्यंत्र खेलते रहे ? चंद लालच में आकर इमान,धर्म को बेचते रहे,सत्य को तडपाते रहे ?


जी हाँ दोस्तों।


जहाँ पर जाता हुं वहाँ पर सुक्ष्म नजर घुमाता हुं।

सैतानी ताकतें और ईश्वरी शक्ति का अंदाजा लगाता हुं।


क्या दिखाई देता है ?


अधर्म का भयंकर अंधियारा।घोर पाप।कलियुग का तमाशा।

और तडपता हुवा सत्य।

देखने को जी नही करता।तडपता हुवा सत्य देखकर मेरी अंतरात्मा भी तडप उठती है।काँप उठती है।


हैवानियत का भयंकर खेल देखकर भगवान से संवाद करता हुं।


करें तो क्या करें ???


भगवे तीलक के प्रती नफरत।

राम के प्रती नफरत।

मंदिरों के प्रती नफरत।

संस्कृति के प्रती नफरत।

देवी देवताओं के प्रती नफरत।

साधु संतों के प्रती नफरत।


आखिर क्यों भई इतनी भयंकर नफरत ?

और वह  भी हमने इतना प्रेम देने के बाद भी ? इतना भाईचारा निभाने के बाद भी ?

आखिर क्यों और कबतक ?


जगह जगह पर बढती आबादी ?या फिर योजनाबद्ध तरीकों से बढाई गई जनसंख्या ?

उन्मत्त, उन्मादी नजर।पाप का भयानक, भयावह आतंक।

तडपते पशुपक्षी,तडपती मानवता।तडपता सत्य।

जगह जगह पर बढते काले रंग।


मंदिरों के आसपास....

कब्जा।

फल मार्केट में....

कब्जा।

रेल स्टेशन के आसपास... 

कब्जा।

झुग्गी झोपडिय़ों में....

कब्जा।

सरकारी योजनाओं पर....

कब्जा।


और......


जनसंख्या बढते ही....


हत्या, लुटपाट, खूनखराबा, बलात्कार,अत्याचार, अन्याय।

और निष्पाप जीवों का आक्रंदन।


और हम......???


गहरी निंद में।

या पैसों के पिछे भागनेवाले ?

मुक्त, फ्रि के लालच में फंसने वाले ?


आफगानिस्तान हमारा था।

पाकिस्तान हमारा था।

बांग्ला देश हमारा था।

मँनमार भी हमारा ही था।

इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल, भूतान......


और भी अनेक प्रदेश।

सुजलाम् ,सुफलाम् ।

ईश्वर की सुंदर,पवित्र भूमी।

मंदिर ही मंदिर।

और मंदिरों में बजती घंटियां।

वहाँ की मंगल आरतीयाँ।

वह प्रभु का गुणगान।

वह सुंदर भजन।


कहाँ गायब हो गए देखते ही देखते ???


और हम....???

इतना होने के बावजूद भी,इतना खोने के बावजूद भी....

नही जागे,नही सुधरे....।


क्यों ???


तो इसमें दोष किसका ???

हमारा या फिर दुसरों का ???


शाम के समय के मंगल भजन ,शुभं करोती....

घरों घरों से गायब हो गए ।


और हम ???

बिनधास्त, निश्चिंत, गहरी निंद में ?

या फिर डुबती खाई में ???


धिरे धिरे समय हाथ से निकलता चला जा रहा है।

समाज सुधारना करने वाले,समाज जागृती करनेवाले

साधु,संत,महात्माएं भी अब बदनाम होते जा रहे है।


या फिर....?

हम ही उन्हें बदनाम कर रहे है ?हम ही उन्हें तडपा रहे है ?

हम ही उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे है ?


सोचने, समझने का समय धिरे धिरे हाथ से निकलता जा रहा है।


समाज के प्रती जागृत व्यक्ति आज भी तलवार की धार पर चलकर, 

सत्य को,

सत्य सनातन को,

धर्म को,

ईमान को,

ईश्वरी सिध्दातों को,

बचाने की लगातार कोशिश में जुटे हुए है।


हम....


उनका कितना साथ दे रहे है ???


मेरे जैसे कुछ व्यक्ति आयेंगे।

समाज जागृती की कोशिश करेंगे।

भरसक प्रयास करेंगे।

समाज की आत्मचेतना जगाने की कोशिश करेंगे।


फायदा....???


राजे शिवाजी जैसे,महाराणा प्रताप जैसे,पृथ्वीराज चौहान जैसे,गुरू गोविंद सिंह जैसे....

अनेक महापुरुष इस पावन धरती पर बारबार अवतीर्ण हुए।

क्या उनको भी हमने संपूर्ण जीत दिला दी ???


उल्टा हमारे ही कुछ धर्मद्रोही, चंद लालच के लिए, आसुरी शक्तियों की,राक्षसी शक्तीयों की...

प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से क्यों सहायता करते रहे ???

सज्जन शक्ति को क्यों रूलाते रहे ?

उनको क्यों बदनाम करते रहे ?


मगर अब....


समय करवट बदल रहा है ?

समय करवट बदल ही रहा है।

दुष्ट, दुराचारी, पापी,उन्मत्त, उन्मादी, राक्षसी, क्रूर सैतानी ताकतों का...


विरोध ही नही तो...


संपूर्ण पृथ्वी से ही,

नाश करने के लिए...


शायद....


निराकार ब्रह्म, साक्षात ईश्वर

कुछ योजनाएं बना रहा है ???


क्या सचमुच में कल्कि आ रहा है ???

क्या शिवतांडव आरंभ होनेवाला है ???


भविष्य के उदर में क्या छिपा है ? यह तो ईश्वर ही जाने।


मगर एक बात तो पक्की तय है की...


परिवर्तन सृष्टि का नियम है।


और शायद सृष्टि का परिवर्तन आरंभ हो चुका है।


हरी हरी : ओम्।


🕉🕉🕉

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विनोदकुमार महाजन।


( संपूर्ण पढने के लिए धन्यवाद।

हो सके तो आगे भेजो।

हो सके तो जागृत बनो।

हो सके तो विश्व व्यापक अभियान में जुडने की कोशिश करो।)

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