आग ही आग

 आग ही आग...


तकरीबन चालिस सालों तक मेरा पूरा शरीर आग में जलता था

चारों तरफ आग ही आग

वेदना ही वेदना

और उपर से भयंकर सामाजिक, सामुहिक उत्पीडन

नारकीय जीवन

निराधार, निराश्रित

आधार, आसरा ढुंडते थे हम

दर दर की ठोकरे खाते खाते मारे मारे फिरते थे

अपयश, अपमान, बिमारियाँ,अनाथपण

कहाँ जायेंगे ?

ना दो शब्दों का मानसिक आधार देनेवाला कोई था

ना रोने के लिए कंधा था

ना कोई अस्पताल ले जानेवाला था

हताश, उदास,असहाय, मजबूर, अकेला

आत्महत्या करना पाप है इसिलिए ना आत्महत्या कर सकता था

ना नशा करके,दारू पिके वेदना शांत करने की कोशीश करता था

आदर्श सिध्दांतों का रास्ता था

जहर भी हजम करूंगा,

मगर ना ही हार मानूंगा

और ना ही पिछे हटुंगा

दश दिशाओं में अकेला ही लडता था

मेरे आण्णा ने दी हुई माला और मंत्र का अखंड, निरंतर जाप करता था


वेदना ही वेदना

आग ही आग

दिमाग में आग

सर में आग

आँखों में आग

कानों में आग

मान,पीठ,कमर,हाथ,पैर,जंघा,

उंगलीयाँ

संपूर्ण शरीर में चौबिसो घंटे भयंकर वेदना,भयंकर आग

असह्य जीवन

भयंकर जीवन

भयानक जीवन

नारकीय जीवन

जहरीला जीवन

चालिस सालों का जीवन

रोने के लिए भी कोई जगह नही


मगर आज...

मेरे आण्णा की कृपा से

सारी अग्नीपरीक्षाएं

सारी सत्व परीक्षाएं

सौ मे से सौ अंक प्राप्त करके पास हो गया


जीवन की लडाई मैं जीत गया

अब केवल और केवल यश ही यश...

चौफेर यश


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

राजगुरु नगर

दि.३/३/२०२१

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