एक था राजा

 एक था राजा

( एक बोधकथा : - काल्पनिक )


लेखक : - विनोदकुमार महाजन

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भाईयों,

जब मुसिबतों का दौर आरंभ होता है तो कौन साथ देता है ?

ऐसा कहते है की,दुनिया में कोई किसिका नही होता है।

इसिलिए एक पूरानी कहावत है,

सुख के सब साथी,दुख में ना कोई।


आवो इसके लिए एक कहानी सुनते है।

एक राजा था।पराक्रमी, परोपकारी, अपनी जनता पर जी जान से प्रेम करनेवाला,दीनदुखितों के आँसू पोंछनेवाला।उसके राज्य में कोई भी दुखी नही था।पशुपक्षियों सहित सभी आनंद से जीवन जी रहे थे।

संपन्नता हर एक के घर में थी।इंन्सानियत भी जिंदा थी।सुसंस्कारित समाज था।

दान धर्म भी बहुत होता था।

धर्म का राज्य था।

हर घर से सोने का धूवां निकलता था।

और राजा समाज के हर घटक को,हर व्यक्ती को सुखी करने के लिए जी - जान से,चौबिसो घंटे सतर्क रहकर मेहनत करता था।


मगर ऐसा कहते है की,गृहदशा जब आती है अथवा साडेसाती का दौर आरंभ हो जाता है...

तो...???

सबकुछ तबाह हो जाता है।


ठीक ऐसा ही हुवा उस प्रजादक्ष,दयालु राजा के साथ।

परकीय आक्रमणकारियों ने उस राज्य पर आक्रमण किया।और देखते ही देखते राजा का विशाल राज्य, परकीयों ने हस्तगत किया।


राजा को राज्य भी छोडना पडा।दर दर की ठोकरे खाते खाते राजा गुप्त रूप धारण करके इधर उधर भटकने लगा।

उसके मुसिबतों से तंग आकर उसकी पत्नी भी अपने बच्चों को लेकर अपने पिता के घर चली गई।सब दाना चुगनेवाले साथी भी भाग गये।

जंगल जंगल भटकने का समय आ गया।


अपने हाथों से जिसे भरभरकर दान किया था,वही भी राजा की ऐसी दुर्दशा देखकर उसे हँसने लगे।ठहाके लगा लगाकर उसकी मजा दूरसे देखने लगे।


साथीयों,

मुसीबतों में जो काम आता है वही सच्चा साथी होता है।मुसिबतों की घडी में जो साथ देता है वही सच्चा इंन्सान होता है।

मगर इस मायावी, मोहमई दुनिया में सबकुछ धन - पैसों का ब्यापार चलता है।

यहाँ आदमी की किमत कम,रूपयों की किमत जादा होती है। 


एक पूरानी कहावत बताता हुं...

शायद समझ जायेंगे।

और जब मुसीबतों से घिरे जायेंगे, अकेले लडने की नौबत आयेगी, मानसिक आधार देनेवाला भी शायद कोई नही बचेगा

तो

हो सके तो...

यही पंक्तियों को याद करने की कोशिश करना।

अर्थबोध होगा तो शायद कुछ परिणाम मिलेंगे।


आँस का बाप,

निरास की माँ,

होते की बहन,

जोरू साथ,

पैसा गांठ,

और निदान का दोस्त।


होते होते राजा का समय बितता गया।जंगल में रहकर राजा ने बहुत सा समय एकांत में तथा ईश्वरी चिंतन और साधना में बिताया।


और एक दिन,

उसकी उग्र साधना की वजह से राजा को ईश्वर का आदेश आया,

राजा के एक पूराने दोस्त को मिलने का।

उसी आदेश के अनुसार तथा ईश्वरी संकेतों के अनुसार राजा

उसके दोस्त को खोजते खोजते दोस्त के घर पहुंचा।

दोस्त को सारी सच्ची कहानी बताई।


और दोनों ने मिलकर एक जबरदस्त निती अपनाकर, एक शक्तिशाली योजना बनाई।और उसी योजना के अनुसार,

आक्रमणकारी राजा पर हल्ला बोल दिया।

देखते देखते आक्रमणकारी हार गया।

राजा की जीत हो गई।

उसका राज्य फिर से वापिस मिल गया।

और फिर आबादी आबाद हो गया।


बोधकथा समाप्त।

साथीयों,

इसी बोधकथा के द्वारा मैं आप सभी को एक संदेश देना चाहता हुं,

चाहे कितनी भी बडी समस्या हो,कितनी भी भयंकर मुसीबत हो,

ठंडे दिमाग से हल निकालना भी है।और हम सभी को हमारे मकसद में कामयाब भी होना है।

राजा की तरह भटके हुए और मुसीबतों में फँसे हुए सभी मित्रों को एक करके,शक्तिशाली योजना द्वारा हमें

केवल और केवल जीतना ही है।

और हम जीतकर ही रहेंगे।

राजा की तरह।दर दर भटकने का बूरा दौर अब हमें समाप्त करना है।


हरी ओम्

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