मत मतांतर

 मत-मतमतांतर और...

मतविभाजन।

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मत,मतांतर,मतभेद से अनेक प्रश्न निर्माण होते है।फिर उसमें स्वार्थ, मोह,अहंकार,अज्ञान,दंभ,लालसा जुड जायेगी तो और अनर्थ।

फिर उसमें भी जातीवाद मिले तो और भी भयंकर।

इससे होगा मतविभाजन।चाहे राष्ट्रनवनिर्माण हो या फिर असुरी वृत्तियों द्वारा निर्मित अधर्म का विरोध हो।

सभी जगहों पर मतविभाजन से भयंकर हानी तो होगी ही।

एक सुत्र,एक धागा,एक ध्वज,एक विचार, एकमत द्वारा ही राष्ट्रनिर्माण हो सकता है।

अनेक मत,अनेक पंथ,अनेक पथ होकर भी संस्कृति को एक धागे से जोडना होगा।वह धागा है,"राष्ट्रवाद और भगवा ध्वज।"

कई बार आपसी संघर्ष, बैर ही कलह की वजह बनती है,और मतविभाजन द्वारा नुकसान होता है।

शब्द दुधारी शस्त्र है।इसिलए शब्दों के शस्र्तों का इस्तेमाल भी संभलकर होना चाहिए।

कोई कहेगा,"शनि-राहु-केतु",सब बकवास है,तो तुरंत मतविभाजन का धोका होगा।और एकसंघ संस्कृति बनाने में बाधाएं आयेगी।

इसीलिए मत-मतांतर-मतभेद-मतविभाजन- भूलकर एक होने की जरुरत है।

तभी राष्ट्रपुनर्निमाण संभव होगा।

इसिलए मतभेद भुलकर एक भगवे के निचे आना ही होगा।

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--  विनोदकुमार महाजन।

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