अमृत और जहर...।

जब,
सज्जन और दुर्जन,
सद्गुणी और दुर्गुणी,
साँप और नेवला,
देव और दानव,
स्वर्ग और नरक,
अमृत और जहर,
सच्चा और झूठा,
इमानदार और बेईमान,
अर्जुन और दुर्योधन,
राम और रावण,
कृष्ण और कंस,
सदाचारी और दुराचारी,
धर्म प्रेमी और अधर्मी,
गरूड़ और साँप,
संस्कृतिपूजक और संस्कृतिभंजक,
परोपकारी और हैवानियत भरे अहंकारी,
सत्य और असत्य,


एक जगह आ जायेंगे तो..?

और ऐसे ही विरुद्ध मतप्रवाही भी एक ही घर में रहे तो ?
और एक ही देश में रहे तो...?
संघर्ष, संघर्ष और अतीभयावह संघर्ष।
भयंकर, भयानक संघर्ष।
केवल संघर्ष और संघर्ष।

आखिर इलाज भी है इसपर..?
बिल्कुल नही।
कृष्ण परमात्मा भी थक गया दुर्योधन के सामने
कृष्ण शिष्टाई करते करते...
युगों युगों से चलता आया यह संघर्ष खतम होगा या नही..?
होगा तो कब..?
नहीं तो क्यों नही...?

भगवान की सब माया,
उसी का सब खेल,
उसी की सब लिला।

यही सिलसिला चलता रहेगा,
सत्य पर असत्य जब भारी पडने लगेगा,
तब...भगवान अवतरित होगा,
और...
असत्य का सफाया करेगा।

हरी ओम।
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--  विनोदकुमार महाजन।

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