बड़े क्रान्तिकारी भगवान हैं कृष्ण

नाचते, गाते, मस्ती और शरारत करते भगवान!! युगानुकूल आचरण करने वाले भगवान!!
💥 जो कहते हैं कि  भेद-भाव और वैचारिक कट्टरता की सीमाओं में बंध कर जीवन मत जियो । ऐसे भगवान जो मनुष्य को उन्मुक्त भाव से अपनी उत्कृष्टता को स्पर्श करने और मनोनुकूल जीवन जीने की स्वतन्त्रता देते हैं।
💥 किसी आडम्बर, नीति-नियम और बंधन के परे भगवान कृष्ण सृष्टि को आनन्द की गहन अनुभूति देने आये हैं।
💥नारी से भेद-भाव का प्रसंग लें तो कृष्ण तो माता यशोदा से ले कर राधा और गोपियों तक नारी शक्ति को प्रथम पूज्या, सर्वोपरि और श्रेष्ठ मानते हैं और राधा को तो स्वयँ से भी पहले भोग प्राप्त करने का अधिकार  देते हैं। 💥नारी को सीमाओं में बाँधने, मर्यादाओं में ढकने और रिवाज़ों के साये में लपेट देने के मुकाबले कृष्ण गोपियों को रात्रि में भी निर्भय हो कर बाहर आने को प्रेरित करते हैं।
💥उनके सखा, समाज के किसान, कामगार और श्रमिक वर्गों के बच्चे हैं जिनके साथ वे आनन्द के अतिरेक में जीते हैं, खाते-पीते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं। कहीं बड़प्पन का बोझ नहीं, भगवान होने का गुरुर नहीं, विद्वता की गम्भीरता नहीं, ऐसे हैं हमारे कृष्ण। 💥पता नहीं कब और कैसे, हमने इतने सारे बन्धन खड़े कर लिये....... ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा, छूत-अछूत, नारी-पुरुष। कृष्ण ने तो कभी नहीं माने ये बन्धन।
💥देश-काल-परिस्थिति अनुरूप निर्णय करते हैं कृष्ण, बस एक आधारभूत सत्य को सर्वदा समक्ष रखते हैं - जो सार्वजानिक लाभ और धर्म के पक्ष में हो वही करणीय है। 💥किसी नियम-संकल्प में नहीं बंधते कृष्ण, एकदम मुक्त रहते हैं और जन-जन में धर्म की रक्षा में सहयोग का भाव भरते रहते हैं।
💥कृष्ण को समझना हो तो पहले अपने मन के बन्धनों से मुक्त होना होगा।
💥धर्म बन्धन नहीं हैं, बन्धन से मुक्त होने का मार्ग है। धर्म विभेद खड़े नहीं करता, अतिरेकी होना भी नहीं सिखाता। धर्म आनन्द प्राप्त करने और उससे भी अधिक आनन्द बाँटने का साधन है जो जीवन को पूर्णता और सार्थकता देता है।
💥 जो बांधता और बाँटता है वह धर्म नहीं हो सकता। जो मुक्त करता, सह-जीविता सिखाता और समन्वय स्थापित करता है वही धर्म है। मरते-मारते विश्व को भारत ही जीवन जीना, शान्ति और साहचर्य सीखा सकता है।
🙏 जय श्री कृष्ण
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