आत्मे संपर्क कैसे करते है?
कठोर तपश्चर्या के बाद आत्मा की अनुभूती मिलने लगती है।जागृत अतिंद्रिय शक्ती,आज्ञाचक्र जागृती द्वारा ब्रम्हज्ञान प्राप्ती से भी आत्मानुभूति मिल सकती है।इसीलिए साधक संवेदनशील तथा सदैव जागरूक होना जरूरी है।
अपने भी इस पंचमहाभूतों के देहतत्व में भी खुद की आत्मा और इसी प्रकार से सभी सजीवों में भी आत्मतत्व की पहचान हो जाती है।
सभी सजीवों में पंचमहाभूतों के देहतत्व का संचलन आत्मतत्व ही करती है।प्राण याने की आत्मा देह से अलग होती है तो,पंचमहाभूतों का देह मृत हो जाता है।
सभी सजीवों में आत्मतत्व, पंचमहाभूतों का देह,जन्म-मृत्यु, आहार-निद्रा-भय-मैथून-पुर्नउत् पादन का तत्व एक ही होता है।
इसी प्रकार से सभी देहतत्व का संबंध आत्मतत्व से और आत्मतत्व का संबंध परमात्म तत्व से निरंतर होता है।मगर प्रारब्ध गतीअनुसार जीव मोहमाया में फँसकर, अज्ञान बन जाता है।और खुद का चैतन्य मई,तेजस्वी, ईश्वरस्वरुप रुप भूल जाता है।
तो देह त्यागने के बाद अदृष्य आत्माएं हमसे संपर्क कैसे करते है?
देहत्याग के बाद आत्मा को खुद की असली पहचान होती है।और भूत-वर्तमान-भविष्य का सही ज्ञान हो जाता है।साकार देह यही संपर्क का माध्यम समाप्त होने के कारण,अनेक आत्माएं अपने प्रियजनों को आश्चर्यकारक स्वप्न दृष्टांत देते है।और सांकेतिक भाषा में मनोगत व्यक्त करते है।कई बार हमें ऐसी गूढ भाषा समझ में नही आती है।तो कोई आत्माएं अनेक दृष्टांत भी देते है।
रामदास स्वामी,गजानन बाबा,अक्कलकोट स्वामी जैसे महासिद्ध योगी तो देह त्यागने के बाद भी, कुछ समय के लिए, फिरसे वही पंचमहाभूतों का देह धारण करके दर्शन देते है।चमत्कार करते है।
ऐसे सिध्द पुरुषों का पंचमहाभूतों पर हमेशा अंकुश रहता है।और पंचमहाभूत ऐसे दिव्य आत्माओं के आज्ञा में ही रहते है।इसलिए राम-कृष्ण-हनुमान जैसे ईश्वर बारबार अपने योग्यता के भक्तों को दर्शन देते रहते है।जिसका आत्मतत्व परमात्म शक्ति से एकरुप हो जाता है,ऐसे दिव्यात्माओं को ऐसी दिव्य अनुभुतीयाँ मिलती रहती है।
आत्मा परमात्मा तो अदृष्य होते है।इसिलिए यह गूढ विषय है।मगर यही आत्मा परमात्मा तत्व अपने अदृष्य श्वासों द्वारा ही अखंडित जुडा रहता है।
और कठोर तपश्चर्या द्वारा ऐसे अनेक गूढ विषयों के मूल तक जाना संभव होता है।
अपने सभी धर्मग्रंथों में इसका सही प्रमाण और विवेचन किया है।इसलिए हमें प्रगति के लिए, धर्मग्रंथ ही सहायक होते है।या फिर गुरुकृपा द्वारा सही ब्रम्हज्ञान प्राप्ती से भी अनेक अदृष्य भेद तथा रहस्य खुल जाते है।
और ऐसे रहस्य का पता
लगाकर अंतिम सत्य तक पहुंचने के लिए ही,ईश्वर द्वारा मनुष्य जन्म का प्रायोजन है।
खुद को जानो,पहचानो।अनेक देह बदलने वाली अपनी चिरंतन, अमर्त्य आत्मा को पहचानो।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
अपने भी इस पंचमहाभूतों के देहतत्व में भी खुद की आत्मा और इसी प्रकार से सभी सजीवों में भी आत्मतत्व की पहचान हो जाती है।
सभी सजीवों में पंचमहाभूतों के देहतत्व का संचलन आत्मतत्व ही करती है।प्राण याने की आत्मा देह से अलग होती है तो,पंचमहाभूतों का देह मृत हो जाता है।
सभी सजीवों में आत्मतत्व, पंचमहाभूतों का देह,जन्म-मृत्यु, आहार-निद्रा-भय-मैथून-पुर्नउत्
इसी प्रकार से सभी देहतत्व का संबंध आत्मतत्व से और आत्मतत्व का संबंध परमात्म तत्व से निरंतर होता है।मगर प्रारब्ध गतीअनुसार जीव मोहमाया में फँसकर, अज्ञान बन जाता है।और खुद का चैतन्य मई,तेजस्वी, ईश्वरस्वरुप रुप भूल जाता है।
तो देह त्यागने के बाद अदृष्य आत्माएं हमसे संपर्क कैसे करते है?
देहत्याग के बाद आत्मा को खुद की असली पहचान होती है।और भूत-वर्तमान-भविष्य का सही ज्ञान हो जाता है।साकार देह यही संपर्क का माध्यम समाप्त होने के कारण,अनेक आत्माएं अपने प्रियजनों को आश्चर्यकारक स्वप्न दृष्टांत देते है।और सांकेतिक भाषा में मनोगत व्यक्त करते है।कई बार हमें ऐसी गूढ भाषा समझ में नही आती है।तो कोई आत्माएं अनेक दृष्टांत भी देते है।
रामदास स्वामी,गजानन बाबा,अक्कलकोट स्वामी जैसे महासिद्ध योगी तो देह त्यागने के बाद भी, कुछ समय के लिए, फिरसे वही पंचमहाभूतों का देह धारण करके दर्शन देते है।चमत्कार करते है।
ऐसे सिध्द पुरुषों का पंचमहाभूतों पर हमेशा अंकुश रहता है।और पंचमहाभूत ऐसे दिव्य आत्माओं के आज्ञा में ही रहते है।इसलिए राम-कृष्ण-हनुमान जैसे ईश्वर बारबार अपने योग्यता के भक्तों को दर्शन देते रहते है।जिसका आत्मतत्व परमात्म शक्ति से एकरुप हो जाता है,ऐसे दिव्यात्माओं को ऐसी दिव्य अनुभुतीयाँ मिलती रहती है।
आत्मा परमात्मा तो अदृष्य होते है।इसिलिए यह गूढ विषय है।मगर यही आत्मा परमात्मा तत्व अपने अदृष्य श्वासों द्वारा ही अखंडित जुडा रहता है।
और कठोर तपश्चर्या द्वारा ऐसे अनेक गूढ विषयों के मूल तक जाना संभव होता है।
अपने सभी धर्मग्रंथों में इसका सही प्रमाण और विवेचन किया है।इसलिए हमें प्रगति के लिए, धर्मग्रंथ ही सहायक होते है।या फिर गुरुकृपा द्वारा सही ब्रम्हज्ञान प्राप्ती से भी अनेक अदृष्य भेद तथा रहस्य खुल जाते है।
और ऐसे रहस्य का पता
लगाकर अंतिम सत्य तक पहुंचने के लिए ही,ईश्वर द्वारा मनुष्य जन्म का प्रायोजन है।
खुद को जानो,पहचानो।अनेक देह बदलने वाली अपनी चिरंतन, अमर्त्य आत्मा को पहचानो।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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