सिंह और गीधडों की टोली।

एक था सिंह,
जंगल का राजा,
मात्र एक ही गर्जना से,
पूरे जंगल को काबू में, रखनेवाला।
सामर्थ्यशाली, ताकतवर, स्वाभिमानी।
और एक दिन....
उस सिंह पर.....
गीधड की टोली ने...
हमला किया....
नरभक्षी गीधड....
उन्हे क्या ?
कोई ईश्वरभक्त मानव भी है,कोई मानवतावादी है,कोई श्रध्दालु है,कोई संस्कारसंपन्न है,कोई संस्कृति पूजक है,कोई आध्यात्मिक है,कोई मुर्तीपूजक है....
चाहे कुछ भी हो,
गीधडों का एक ही जीवन का उद्देश्य था,है,रहेगा,
चाहे कोई भी हो..उसे उध्दस्त कर देना।
खैर,
तो अकेले सिंह को..
अनेक क्रुर, अमानवीय गीधडों ने घेर लिया,
और कहाँ...
मृत्यु को तैयार रहना,
हम तुम्हें नोचकर खायेंगे।
नही तो 'पूंछ कटवा ले'
और'कुत्ता बन जा'
तब तु जरूर बचेगा।
जिन सिंहों को मृत्यु का भय नही था,
उन्होंने मृत्यु को स्विकार किया,
अर्थात गीधडों द्वारा
मारे गए,और जो सिंह...
जान बचाना चाहते थे,
उन्होंने सोचा,
आज 'पूंछ काटकर'
कुत्ता बनते है..
और जान बचाते है..और समय का इंतजार करते करते,
एक दिन गीधडों का
प्रतिशोध लेते है।
इसी तरह कुत्तों की संख्या बढती गई,
सिंहों की संख्या घटती गई।
'पूंछ काटकर'कुत्ता बनाया गया सिंह..
फिर कभी भी,
सिंह न बन सका,
जंगल का राजा,
कभी भी न बन सका।
एक कुत्ता बनकर रहने में और आगे भी कुत्तों की फौज बनाने में,
और अनेक कुत्तों की संख्या बढाने में ही उसको आनंद मिलने लगा।
'कुत्ता' बनया गया सिंह फिर कभी भी वापिस 
सिंह न बन सका।
जंगल का राजा न बन सका।
'पूंछ'काटकर कुत्तों की टोलियों में आनंद से रहना ही 
उसका जीवन बन गया।

यह कथा संपूर्ण रूप से काल्पनिक है।इससे किसिका दूर दूर तक कोई संबंध नही है।
लेखक ने कल्पना शक्ति से एक काल्पनिक कथा लिखी है।

हरी ओम।
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--  विनोदकुमार महाजन।

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