धर्मजागृति...।
हिंदुओं में धर्मजागृति बहुत ही कम है।
अनेक कारण है,अनेक वजह होती है।
भारतीय बंहुसंख्य हिंदु समाज जादा तो देहात में बिखरा हुवा है।रोजी रोटी में ही पूरी उमर इनकी गुजर जाती है।दारिद्रय, अज्ञान की वजह से धर्म या बाहरी विश्व के बारे में सोचने का समय ही इनको नही मिलता है।इसीलिए धर्म के प्रती अखंड उदासीनता ही रहती है।
दुसरा हिंदु समाज जो होता है,वह जागृत तो होता है,धर्म के प्रती कर्तव्य तत्पर या संवेदनशील नही होता है।जागृती तो है मगर फिर भी संवेदनशून्यता ही मारक होती है।
आर्थिक दृष्टि से भी उच्च वर्ग-मतलब आर्थिक विकसित हिंदु समाज कमहोता है,और जो होता है वह समाज केवल पैसा कमाने के लिए ही जीवन बिताता है।इसिलए धर्म के प्रती इनकी भी उदासीनता होती है।
मध्यम वर्ग और आर्थिक निचला वर्ग भी संस्कारों के अभाव से धर्म से दूर ही रहता है।
साल में एक दो बार मंदिर में हो सके तो दर्शन को जाना यह कोई धर्म जागृती नही है।
और कुछ समाज तो ऐसा है की,
दारु की एक बोतल के लिए, या सौ रूपये की एक नोट के लिए, या फिर कुछ चंद रूपयों के लिए- खुद को,या फिर खुद के मत को बेच डालता है।
ऐसे लोगों से धर्म जागृती,या राष्ट्रहितों की अपेक्षा करना एक भ्रम ही होगा।ऐसे लोगों को मुगल या अंग्रेजों की गुलामी करने में भी जरासी भी शर्म नही आती है।तो बिके हुए लोगों से देश की आबादी की अपेक्षा करना कैसे संभव होगा ?
फिर जातीपाती में अटका हुवा समाज भी धर्म के बारे में उदासीन ही रहता है।
और फिर समाज को तोडने वाले कुछ गद्दार जयचंद।
इसिलए जो भी जागृत है,और जमीनी तौर पर काम करता है,समाज को जोडने की,एकसंध बनाने की कोशिश में लगातार रहता है,उसको धर्म जागृती पर जादा यश नही मिल सकता है।
और एक भयंकर वास्तव है।जब कोई जमिनी तौर पर कार्य करते है तो उसे ही बदनाम करके लटकाने की,या फिर भयंकर षड्यंत्र द्वारा जेल भेजने की योजना बनती है।
और दूसरी भयंकर महत्वपूर्ण बात,अनेक हिंदु संस्कृति को तबाह करने का सपना देखने वाले,हमेशा जमीन के निचे रहकर भयंकर षड्यंत्र कारी योजना सदैव बनाते रहते है,जिसका हमें पता तक नही चलता है।जब बर्बादी सामने आती है,तब हमारी आँखें खुलती है।
जमीन के निचे की तबाही की योजना अती भयानक और भयंकर होती है।और हम दुर्दैववश दिनरात सोये हुए रहते है।जो हमें जगाने की कोशिश करता है,उसे ही मुर्ख समझा जाता है।
इसीलिए आजतक धर्म की भयंकर हानी हुई है।हम सदैव अनेक सदियों से पिछे पिछे हटते जा रहे है।और इसी वजह से,हम बहुसंख्यक होकर भी,हमारा संपूर्ण विश्व में एक भी हिंदु राष्ट्र नही है।
फिर भी समाज सोया हुवा ही है।
अब तो यहाँ पर गुणवत्तापूर्ण व्यक्तियों को जानबूझकर नरकयातनाएं देने का भयंकर षड्यंत्र इस देश में दिनबदिन बढ ही रहा है।ऐसे गुणवत्तापूर्ण व्यक्ति परदेशों में जाकर बस रहे है,और वहाँ के देशों को भी आबाद कर रहे है।
और हमारा देश ?
लिखने को और भी है।अनेक बडी बडी किताबें भी इस विषयों पर लिख सकता हुं।और अनेक किताबें भी लिखी जायेगी।
मगर अब लेखन सिमा की वजह से,यह लंबाचौडा लेख पूरा करता हुं।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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