मैं जीतकर ही रहूंगा!!!
मैं शब्द तो अहंकार उत्पन्न करता है।और यह ईश्वरी सिध्दांत को छोडकर,असुरी सिध्दांत की तरफ जाता है।फिर भी मैं आज थोडा स्वार्थी बनकर यह कहूंगा की,'जी हां,मैं जीतकर ही रहूंगा!!!"
मेरे धर्म के लिए,मेरे संस्कृती के लिए,मैं जीतकर ही रहूंगा।
इसके लिए मैंने तकरीबन उन्नीस बीस साल कठोर तपस्या की है।अनेक कठोर अग्नीपरीक्षांएं,ईश्वरी सत्वपरीक्षांएं दी है।अनेक विष के सागर पार किए है।साक्षात मृत्यु को भी पिछे हटा दिया है।नशीब और प्रारब्ध पर भी विजय प्राप्त की है।धन संपत्ती कमाने का न कोई मुझे मोह था,और न आगे रहेगा।शुध्द और उच्च बैराग्य और स्थितप्रज्ञता का मैं हमेशा,स्वार्थ मोह से हटकर पालन करता हूं।आज भी जहर के प्याले बडे आनंद से पिता हूं।अकेला।।।।
यह क्यों हो रहा है पता नही है।कोई तो भी अद्रश्य शक्ती मुझसे यह सब करवा रही है।जो कुछ लिखता हूं,उसे भी कोई अद्रश्य शक्ती मुझसे लिखा रही है।आत्मस्तुती ,अहंकार अधोगती और विनाश की ओर ले जाते है।क्यों हो रहा है यह सब?कौन कर रहा है यह सब?मेरी पवित्र और शुध्द आत्मा?या कोई परकाया प्रवेश?
एक बात तो पक्की है की,कार्यपुर्ती के लिए मेरा जनम जनम का गहरा रिश्ता है।
इसिलिए मुझे सिर्फ और सिर्फ जीत ही चाहिए।और मैं जीतकर ही रहूंगा।न चाहिए धन,न चाहिए दौलत,न चाहिए ऐशो आराम,न बडप्पन।दो वक्त की रोटी और एक झोपडी मिले तो भी मैं संतुष्ट हूं न मिले तो भी संतुष्ट ही हूं।
मेरे दादाजी,यही मेरे सद्गुरु।"आण्णा।"कठोर गायत्री उपासक।देहत्यागने के बाद भी मुझे अनेक चमत्कार दिखाए।गायत्री मंत्र भी दिया।जीसका आज पांच कोटी जाप पूरा हो चुका है।और दुसरे सिध्द मंत्रो का सात कोटी।कुल बारह कोटी।(लो आ गया ना मुझे अहंकार?गुप्त धन का भंडार ही आज मैंने खोल दिया।खैर)
ईश्वरी कार्य के लिए मैंने अनेक देवी देवता,सिध्द पुरुषों की कृपा,आशिर्वाद,वरदहस्त प्राप्त किए है।आत्मतत्व से मैं तो अनेक देवतांओं के पास स्वर्ग में रहता हूं।और देहतत्व से तो पंचमहाभूतों के इस छोटेसे कुडी के देहतत्व में रहता हूं।
मुझे पुरा भरौसा है की जीतना सच्चा अच्छा प्रेम मैं आप सभी पर करता हूं,उतना ही शुध्द,पवित्र ईश्वरीय प्रेम आप भी मुझसे करते है।इसिलीए तो लिखने का ढाडस कर रहा हूं।
तो आईये।सब मिल कर अब,"सत्य को,सत्य-सनातन को,ईश्वरी सिध्दांतो को"केवल और केवल विजयी ही करते है।खुद के लिए न सही,ईश्वर के लिए,ईश्वरी सिध्दांतो के लिए।हमे जीतना ही है।और इसके लिए ही हम सभी पैदा ही हुए है।
निगेटीव्ह थिकिंग नही,ओन्ली पॉझिटिव्ह।
पढकर बोअर तो नही हो गए ना आप?
हरी ओम।
**विनोदकुमार महाजन।
मेरे धर्म के लिए,मेरे संस्कृती के लिए,मैं जीतकर ही रहूंगा।
इसके लिए मैंने तकरीबन उन्नीस बीस साल कठोर तपस्या की है।अनेक कठोर अग्नीपरीक्षांएं,ईश्वरी सत्वपरीक्षांएं दी है।अनेक विष के सागर पार किए है।साक्षात मृत्यु को भी पिछे हटा दिया है।नशीब और प्रारब्ध पर भी विजय प्राप्त की है।धन संपत्ती कमाने का न कोई मुझे मोह था,और न आगे रहेगा।शुध्द और उच्च बैराग्य और स्थितप्रज्ञता का मैं हमेशा,स्वार्थ मोह से हटकर पालन करता हूं।आज भी जहर के प्याले बडे आनंद से पिता हूं।अकेला।।।।
यह क्यों हो रहा है पता नही है।कोई तो भी अद्रश्य शक्ती मुझसे यह सब करवा रही है।जो कुछ लिखता हूं,उसे भी कोई अद्रश्य शक्ती मुझसे लिखा रही है।आत्मस्तुती ,अहंकार अधोगती और विनाश की ओर ले जाते है।क्यों हो रहा है यह सब?कौन कर रहा है यह सब?मेरी पवित्र और शुध्द आत्मा?या कोई परकाया प्रवेश?
एक बात तो पक्की है की,कार्यपुर्ती के लिए मेरा जनम जनम का गहरा रिश्ता है।
इसिलिए मुझे सिर्फ और सिर्फ जीत ही चाहिए।और मैं जीतकर ही रहूंगा।न चाहिए धन,न चाहिए दौलत,न चाहिए ऐशो आराम,न बडप्पन।दो वक्त की रोटी और एक झोपडी मिले तो भी मैं संतुष्ट हूं न मिले तो भी संतुष्ट ही हूं।
मेरे दादाजी,यही मेरे सद्गुरु।"आण्णा।"कठोर गायत्री उपासक।देहत्यागने के बाद भी मुझे अनेक चमत्कार दिखाए।गायत्री मंत्र भी दिया।जीसका आज पांच कोटी जाप पूरा हो चुका है।और दुसरे सिध्द मंत्रो का सात कोटी।कुल बारह कोटी।(लो आ गया ना मुझे अहंकार?गुप्त धन का भंडार ही आज मैंने खोल दिया।खैर)
ईश्वरी कार्य के लिए मैंने अनेक देवी देवता,सिध्द पुरुषों की कृपा,आशिर्वाद,वरदहस्त प्राप्त किए है।आत्मतत्व से मैं तो अनेक देवतांओं के पास स्वर्ग में रहता हूं।और देहतत्व से तो पंचमहाभूतों के इस छोटेसे कुडी के देहतत्व में रहता हूं।
मुझे पुरा भरौसा है की जीतना सच्चा अच्छा प्रेम मैं आप सभी पर करता हूं,उतना ही शुध्द,पवित्र ईश्वरीय प्रेम आप भी मुझसे करते है।इसिलीए तो लिखने का ढाडस कर रहा हूं।
तो आईये।सब मिल कर अब,"सत्य को,सत्य-सनातन को,ईश्वरी सिध्दांतो को"केवल और केवल विजयी ही करते है।खुद के लिए न सही,ईश्वर के लिए,ईश्वरी सिध्दांतो के लिए।हमे जीतना ही है।और इसके लिए ही हम सभी पैदा ही हुए है।
निगेटीव्ह थिकिंग नही,ओन्ली पॉझिटिव्ह।
पढकर बोअर तो नही हो गए ना आप?
हरी ओम।
**विनोदकुमार महाजन।
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