एक कुत्ते से संवाद...।

मुझे हमेशा सजीवों से संवाद करने की आदत है।
तो एक दिन मैंने ऐसे ही एक कुत्ते से संवाद किया।
तो इस प्रकार से संवाद रहा।
वैसे तो कुत्ते बहुत इमानदार होते है।अगर रास्ते का कुत्ता भी हो तो वह भी कभी इमान नही छोडता है,या चंद लालच में,पैसों के लालच में कभी इमान बेचता नही है।
सिर्फ़ एक बार किसी कुत्ते को अगर एक रोटी भी सिर्फ़ एक रोटी भी दी तो वही कुत्ता जीवनभर हमसे बेईमानी करना दूर,हमें हर पल बडे प्रेम से बाते करता रहता है।और जीवनभर केवल प्रेम ही करता रहता है।
तो मैंने बस्स युं ही थोडा सा संवाद किया उससे।
जो इस प्रकार रहा।
मैंने उसको पूछा,
" क्या चल रहा है ?"
उसने उत्तर दिया, बडा रंजक और सत्य भी ।
कुत्ता बोला,
" बस्,मजे में हुं।ना इंन्सानों जैसी मुझे कभी चिंता सताती है।ना कभी भविष्य को लेकर,बिवी बच्चों के लिए चिंतित रहता हुं।
ना घर चाहिए, न बंगला,न गाडी।न सोना,न चांदी।ना रूपया पैसा चाहिए, ना ऐशो आराम।न पंच पक्वान्न चाहिए, ना सोने की थाली।
इसीलिए हमेशा मस्त रहता हुं,खुश रहता हुं।अपने ही मस्ती में मस्त होकर जीता हुं।
ना बिवी चाहिए, ना बच्चे।और ना ही उनके भविष्य की चिंता।
न मोक्ष चाहिए, न मुक्ति चाहिए।न स्वर्ग चाहिए, न आत्मज्ञान चाहिए, न ब्रम्हज्ञान चाहिए।
रास्ते पर रहना,रास्ते पर ही सोना।रास्ते पर ही खाना,पिना।मस्त मस्त जीना।
ना सत्ता संपत्ति का लालच है,ना किसी का धन हडपने की योजनाएं बनाना है।
भगवान ने ,कुदरत ने जैसा जनम दिया, वैसा मस्त होकर,बडे आनंद से जीता हुं।ना कभी मृत्यु की चिंता या डर सताता है,ना ही कभी अगला जनम क्या होगा इसपर सोचता हुं।
प्रारब्ध गतीअनुसार भगवान जो भी अगला देह देगा,उसी में फिर से मस्त रहुंगा, सिर्फ मानव योनी छोडकर।"

मित्रों, उसकी दिव्य बाणी,उसका दिव्य ज्ञान सुनकर सचमुच में मैं हैरान रह गया।
फिर मैंने आगे उसको एक और प्रश्न किया,
" अरे,इंन्सान तो कभी कभी स्वार्थ के लिए हैवान भी बन जाता है।अपने भी कभी कभी लालच में धोका देते है।इमान भी बेचते है।अगर किसी को एक लाख क्या,एक करोड़ भी दिए तो भी लालच में आकर कभी धोका देगा,घात करेगा,विश्वास घात करेगा, इसका कभी कोई भरौसा नही है।
मगर तु तो कुत्ता होकर भी इमानदारी से जीवनभर रहता है।सिर्फ़ एक रोटी भी तुझे दी,तो तु जीवन भर याद रखता है,और उसपर आत्मा का सच्चा, पवित्र प्रेम ही करता है।
इसकी वजह क्या है..?"
मेरे ऐसे कहने पर उस कुत्ते ने मेरी तरफ देखा,थोडासा मुस्कुराया।और मेरी तरफ देखते देखते वहाँ से चला गया।
मेरी तरफ देखने का और उसकी मुस्कुराहट का मैं अभीतक उत्तर ढुंड रहा हुं।
शायद आप में से कोई उत्तर देगा।

हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।

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