एक दिन घर वापस लौटना ही है।

हम सभी,
हमारी ड्यूटी पूरी करने के लिए,
हमारे,
सुंदर, पवित्र, निर्मल,स्वच्छ, भव्य, दिव्य घर से अर्थात स्वर्ग से पृथ्वी पर आये है।
ईश्वरी कार्य हेतु और सफलता हेतु खुद भगवान ने हमें धरती पर भेजा है-सत्य की,और सत्य सनातन की जीत के लिए।
देहतत्व तो पंचमहाभूतों का है जो पृथ्वी से जुडा है,मगर आत्मतत्व से तो हम स्वर्ग से जुडे है।चराचर से,ब्रम्हांड से और सभी प्राणियों से जुडे है।
इसिलए आत्मतत्व से हम सभी एक ही है।भेद है ही कहाँ,भाईयों ?
एक दिन यह देह छोडना हम सभी को तय है।अर्थात मृत्यु अटल है।इसिलए इसे मृत्युलोक भी कहते है।
और जब मृत्यु के बाद,हम हमारे घर...स्वर्ग को खाली हाथ,अर्थात भगवान का कार्य किए बगैर लौट जायेंगे तो ?
भगवान को तो बुरा लगेगा ही।इसीलिए हम जब वापिस घर लौटेंगे तो भगवान भी हमारा आनंद से स्वागत करें,ऐसा कुछ महान कार्य पृथ्वी पर करके ही जाना होगा।
ईश्वरीय कार्य।
एक एक पल,एक एक दिन, एक एक महिना,साल व्यर्थ हम क्यों गँवा रहे है ?
मरने से पहले सत्य की,सत्य सनातन की,ईश्वरी कानून की,भगवान की,भगवी पताका धरती पर चारों ओर लहराकर ही हमें घर वापिस जाना होगा।
सत्य ही जीवन है,सत्य ही ईश्वरी सिध्दांत है।और सत्य सनातन ही सत्य धर्म तथा अंतिम ईश्वरी कानून भी है।
और अब हम सभी इसी कार्य सफलता हेतु पृथ्वी पर आये है तो कार्य सफल बनाकर ही रहेंगे। है ना ?
जीवन की अंतिम खोज क्या है,यही जानने के लिए मनुष्य जन्म है।
पंचमहाभूतों का यह देह निमित्त मात्र है और एक दिन इसे छोडना भी है,और आत्मतत्व जो निरंतर परमात्मतत्व से,स्वर्ग से जुडा है यही अंतिम सत्य है।श्वासों द्वारा हम निराकार ब्रह्म से निरंतर जुडे हुए है।और जब श्वास रूकती है तो ?
अर्थात ? मृत्यु...।
और यही सच्चा ज्ञान हमारा आदर्श सनातन धर्म सिखाता भी है।इसिलए संपूर्ण विश्व में सत्य सनातन ही एकमेव सही और सच्चा धर्म भी है,और यही अंतिम सत्य भी है।
जो भटके,अटके,अज्ञानी है उन सभी को हमारे प्रवाह में शामिल करना है।
मनुष्यों के अतिरिक्त जो अन्य सजीव है,वह आत्माएं उनकी प्रारब्ध गतीअनुसार अज्ञान से बँधे हुए है।
इसीलिए जन्म से मृत्यु तक उनका जीवनचक्र ऐसा ही चलता रहेगा।
मगर...फिर भी...
उन्हे भी हमारा पवित्र, दिव्य प्रेम समझने की अनुभूति भगवान ने दी है।
केवल और केवल मनुष्य जन्म ही ऐसा है की,हम सच्चाई की खोज करके,जीवन के अंतिम सत्य तक पहुंच कर,उसी दिशा से मार्गक्रमण हम कर सकते है।
इसीलिए मेरे प्यारे सभी भाईयों, सच्चाई जानो-पहचानो।
जागो।इसिलिए ही...
चलो सत्य की ओर,
चलो सत्य सनातन की ओर।
चलो सत्य सनातन की जीत की ओर।
चलो सत्य सनातन का भगवा ध्वज संपूर्ण धरती पर लहराने की ओर।
और...हम सभी...
इसमें...
एक दिन....
विजयी होकर ही रहेंगे।
यही भगवान की भी इच्छा है।और...
भगवान की इच्छा कौन टाल सकता है क्या ?
कितना भी बडा आसुर,पृथ्वी पर आतंक से हाहाकार मचानेवाला कितना भी बडा हैवान, भगवान की इच्छा के सामने टिक सकेगा क्या ?
तो....?
हम सब मिलकर, चलो सत्य सनातन की ओर।

हरी ओम।
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--  विनोदकुमार महाजन।

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