मौनीबाबा...।

मेरे एक मित्र ने मौनीबाबा का परिचय दिया और उनके दर्शन करने को कहा।
तत्काल दूसरे दिन में जाकर मैंने उनके दर्शन किए।
शांत,दृढनिश्चयी, सत्वगुणप्रधान चेहरा।कृपालु नेत्र।उमर एक सौ पचास के आसपास।( जो मेरे मित्र ने मुझे बताई थी।)विश्व के कोने कोने से उनके दर्शन को अनेक व्हिआयपी आते रहते है।बाबा जी ने मुझे जो नाम बताए,मैं यहाँ पर गोपनीयता की वजह से नही लिख सकता।
मैंने उनके दर्शन होने के बाद कहा,"बाबा मैं मेरे लिए नही,सनातन को विश्व के कोने कोने तक पहुंचाने का आशीर्वाद माँगने आया हुं।"
मैंने इसी कार्य हेतु सहास्त्राकार जागृती की भी प्रार्थना की थी बाबाजी को।
जो बाद में उन्होंने स्वप्न दृष्टांत में मुझे दिखाया।
भिड बढेगी इसीलिए मैं उनका पता भी नही दे सकता।
अब आगे की बात सुनकर आप सभी हैरान रह जायेंगे।यह बाबाजी माँगनेवाले नही,अपितु देनेवाले बाबाजी है।
जो भी उनके दर्शन को जाता है,उनकी सभी मनोकामनाएं तो जरूर पूरी तो होती ही है।मगर बाबाजी वहाँ पर आने वालों को हमेशा कुछ न कुछ खिलाते रहते है।और कभी कभी किसिको पैसे,रुपये भी बाँटते है।
मैं जब उनके अगले दर्शन के लिए, मेरा पूरा परिवार लेके गया तो...
मुझे आश्चर्य हुवा,बाबाजी ने हम सभी को खाने को तो दिया ही,मेरे आँखों के सामने अनेक लोगों को,जिसमें अनेक स्त्री पुरूष थे। रूपये भी दिए।
और मेरी बेटी को भी बाबाजी ने पाँचसौ का नोट दिया।आम की बर्फी का पैकेट भी दिया।और हम सभी को मिठाईयाँ भी दी।वह दिन था,गुरुवार मार्गशीर्ष का,लक्ष्मी पूजन दिवस।
अर्थात साक्षात लक्ष्मी माताजी ने बाबाजी के रूप में मेरी बेटी पर कृपा की।
आजतक पूरे जीवन में ऐसे महान सत् पुरूष को मैंने पहली बार देखा है।
ऐसे ईश्वर स्वरूप मौनीबाबा को कोटि कोटि प्रणाम।
हरी ओम।
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--  विनोदकुमार महाजन।

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