बस्स!!!!!! थोडासा दिल बडा चाहिए।
न जाने क्यों,इन्सान का दिल दिन ब दिन बहुत ही छोटा होता जा रहा है।आकार से नही।समझ सें।जी हां।कलि का संचार जोरों से और अधिक मात्रा में बढ रहा है।स्वार्थ,मोह,अहंकार के कब्जे में इंसान का दिल और दिमाग कली ले रहा है।"मैं बडा।मुझसे बडा कोई न होय",ऐसी धारणा दिन ब दिन बढती जा रही है।रिश्ते नाते खतम होते जा रहे है।मन की दिवारें बडी होती जा रही है।
शुध्द,पवित्र,निरपेक्ष,निष्पाप प्रेम लुप्त होता होता जा रहा है।क्या कलियुग का यही महीमा है???
आपस में विश्वास समाप्त होता जा रहा है।पैसा ही भगवान का रुप ले रहा है।"भला बुरा कुछ भी काम करो और ऐशोआराम करो",सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाओ,यही धारणा बढ रही है।स्वर्ग से भगवान भी आएगा,तो यह नजारा देखकर भाग जायेगा।क्यों???"घोर कलियुग"
पशु पक्षियों पर प्रेम करके देखो।कभी धोका नही देंगे।और स्वार्थी इंन्सान???कितना भी प्रेम करो,खुद भुका रहकर उसको खाना खिलाओ,फिर भी,कब धोका देगा और सर्व नाश करेगा इसका कोई भरोसा नही दे सकता।
मगर........ईश्वरी सिध्दांतो से चल रहे सच्चे और अच्छे,नेकदिल,इंन्सानों को तो इस कली के महीमा से बहुत पिडा,तकलिफें उठानी पड रही है।ईश्वर तुल्य महात्माएं सच्चाई और अच्छाई को तो नही छोड सकते है।और, " "उन्मत्त कली",चाहे लाख कोशीशें करे,महात्माओं का दिल दिमाग,अपने कब्जे में लेने प्रयास करें,सत्पुरुष मृत्यु को गले लगाएंगे,मगर........
कली के शरण में नही जायेंगे।देह रहे न रहे,पर्वा नही।
क्यों हो रहा है ऐसा???
दिल छोटा क्यों कर रहा है कली??
अपना पूर्ण साम्राज्य पृथ्वी पर फैलाने के लिए।बस्स!!!!उसे और चाहिए ही क्या???
अगर,हर एक व्यक्ती यह सोचेगा की,चाहे कुछ भी हो,मैं कली के शरण में नही जावुंगा।संकुचितता को छोडकर,बडे दिल से,सभी पर-सजीवों पर,पशु पक्षीयों पर,शुध्द,पवित्र,निष्पाप,निर्वा ज्य,निष्कलंक प्रेम करता ही रहुंगा।प्रभु की सुंदर धरती को मैं और सुंदर बनाउंगा।मैंदुख झेलुंगा मगर प्रभु को दुख नही होने दुंगा।प्रभु को आनंदी देखने के लिए,मैं स्वार्थ,मोह,अहंकार,इर्षा,द्वे ष,जलन का,ऐसे राक्षसी गुणों का त्याग करके,ईश्वरी गुण अवगत करुंगा।पर पिडा,परनिंदा,परदु:ख देने के बजाए,खुद दुख झेलकर दुसरों के चेहरे पर आनंद,हास्य देखने की कोशीश करूंगा।बस्स!!!यही तो सभी धर्मों का सार है।यही तो इन्सानियत है।यही तो ईश्वरी सिध्दांत है।और......यही तो भगवान का,हमें पृथ्वी पर इंन्सान बनाकर भेजने का मकसद भी...भी...भी...है।
तो हम प्रभु को दुखी करेंगे या आनंदी,यह तो हमारे ही हाथ में है।सही बात कर रहा हूं ना मैं???या झुठ बोलकर आप को फंसा रहा हूं???
मगर...इसके लिए,बस्स!!!!एक ही बात है..भाईयों और बहनों....."दिल थोडा बडा होना चाहिए।"है ना सही ,"विनोद कुमार की बात?????"
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दिलदार,
विनोदकुमार महाजन।हरी ओम।
शुध्द,पवित्र,निरपेक्ष,निष्पाप प्रेम लुप्त होता होता जा रहा है।क्या कलियुग का यही महीमा है???
आपस में विश्वास समाप्त होता जा रहा है।पैसा ही भगवान का रुप ले रहा है।"भला बुरा कुछ भी काम करो और ऐशोआराम करो",सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाओ,यही धारणा बढ रही है।स्वर्ग से भगवान भी आएगा,तो यह नजारा देखकर भाग जायेगा।क्यों???"घोर कलियुग"
पशु पक्षियों पर प्रेम करके देखो।कभी धोका नही देंगे।और स्वार्थी इंन्सान???कितना भी प्रेम करो,खुद भुका रहकर उसको खाना खिलाओ,फिर भी,कब धोका देगा और सर्व नाश करेगा इसका कोई भरोसा नही दे सकता।
मगर........ईश्वरी सिध्दांतो से चल रहे सच्चे और अच्छे,नेकदिल,इंन्सानों को तो इस कली के महीमा से बहुत पिडा,तकलिफें उठानी पड रही है।ईश्वर तुल्य महात्माएं सच्चाई और अच्छाई को तो नही छोड सकते है।और, " "उन्मत्त कली",चाहे लाख कोशीशें करे,महात्माओं का दिल दिमाग,अपने कब्जे में लेने प्रयास करें,सत्पुरुष मृत्यु को गले लगाएंगे,मगर........
कली के शरण में नही जायेंगे।देह रहे न रहे,पर्वा नही।
क्यों हो रहा है ऐसा???
दिल छोटा क्यों कर रहा है कली??
अपना पूर्ण साम्राज्य पृथ्वी पर फैलाने के लिए।बस्स!!!!उसे और चाहिए ही क्या???
अगर,हर एक व्यक्ती यह सोचेगा की,चाहे कुछ भी हो,मैं कली के शरण में नही जावुंगा।संकुचितता को छोडकर,बडे दिल से,सभी पर-सजीवों पर,पशु पक्षीयों पर,शुध्द,पवित्र,निष्पाप,निर्वा
तो हम प्रभु को दुखी करेंगे या आनंदी,यह तो हमारे ही हाथ में है।सही बात कर रहा हूं ना मैं???या झुठ बोलकर आप को फंसा रहा हूं???
मगर...इसके लिए,बस्स!!!!एक ही बात है..भाईयों और बहनों....."दिल थोडा बडा होना चाहिए।"है ना सही ,"विनोद कुमार की बात?????"
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दिलदार,
विनोदकुमार महाजन।हरी ओम।
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