मन की मैल....
आध्यात्म में आत्मशुद्धि बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।
मतलब सभी विकारों पर विजय प्राप्त करके,मन शुध्द करना।
मतलब मन की मैल उतारना।
जिसके मन में मैल होती है,उसपर ईश्वरी कृपा कभी भी नही होती है।
ह्रदय, मन और आत्मा जब शुध्द होती है तो वह पुण्यात्मा सभीपर,पशुपक्षियों पर निस्वार्थ प्रेम करता है।
सभी सजीवों में भगवान को देखता है।
और ऐसे पुण्यात्माओं के ह्रदय में खुद भगवान, प्रभु परमात्मा निरंतर, अखंड वास करता है।
इसीलिए मन पवित्र,निष्कपट होना चाहिए।
यही जीते जी स्वर्ग है,मोक्ष है।यही पर ब्रम्हांड भी है।और वह पुण्यात्मा साक्षात ईश्वर स्वरूप भी बन जाता है।
इसिलिए सभी पर शुध्द, पवित्र, निस्वार्थ प्रेम करो।
हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।
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