कण कण में है भगवान।

कण कण में है भगवान।
रोम रोम में बसा है मेरा प्यारा राम।
इसे भी कहते है आत्माराम।
अज्ञानी, मुर्खों में भी बसता है भगवान।
रावण कँस में भी है,
भगवान।
फिर भी यह लडाई झगडा क्यों?
यह है माया का खेला।
नित नवेला।
साँप में भी वही है।
नेवले में भी वही है।
फिर भी यह "बैर",का
कैसा है झमेला।
बंद आँखे खोलों,
माया के काले बादल तोडो।
आत्मोद्धार के रास्ते जोडो।
हरी हरी:ओम।
🙏🕉💐🌹
विनोदकुमार महाजन।

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