न खाउंगा, न खाने दुंगा।
"न खाउंगा, न खाने दुंगा",और एक दिव्य मंत्र,"सबका साथ,सबका विकास।"
ऐसे दिव्य मंत्र की वजह से बडी बडी खानेवाली मछलियां तडप रही है,तरस रही है।
इसीलिए एक भी हो रही है।एक होकर बडे बडे नारे भी लगा रही है।
क्या करें?आजतक तो बहुत खाया।जनता जनार्दन का,भोलेभाले लोगों का खून भी चूसचूसकर पिया,और अब...
एकाएक...खानापीना बंद,भ्रष्टाचार बंद,पाप का पैसा बंद,हराम का धन बंद,गरीबों का खून चूसना बंद....।।।
तो ऐसी मछलियां तो छटपटाएगी ही ना?
देशवासियों का खून चूसनेवाले बडे बडे मच्छर तडपेंगे,तरसेंगे ही ना?और जनता को,
"मुखौटा धारण करके,मिठी मिठी बातें करके,दहला-फुसलाकर,या फिर चिल्ला चिल्लाकर, गलतफहमीयां,बहकावा,नाटक,ड्रामे गिरी,एक्टिंग की,(राष्ट्रप्रेम की,गरीबों के प्रती प्रेम की)पुरजोर से कोशिश करेंगे ही ना?
मगर करे तो क्या करें?
जनता पहले जैसी बहकावे में आकर निर्णय लेनेवाली थोडे ही रही है?
नाटककारों का असली नाटकीय मुखौटा तो जनता जानती है।सब पहचानती है।
इसिलए----?अब धुर्त, लबाड,भेडिये, मछलियां, मच्छर एक भी हो जायेंगे...
और..
"देवदूत",पर हमले करेंगे तो भी...
जी हाँ...तो भी....
"देवदूत",ही जीतनेवाला है और है।
ईश्वर और उसकी रचना के आगे ...
बडे बडे कुकर्मीयों की..
क्या चलेगी?धाराशायी हो जायेंगे...।
बस्स....थोड़ा...
समय का इंतजार बाकी है।
(कहानी समझ में आई ना दोस्तों?कहानी बडी अजीब है,और दिलचस्प भी है।मजेदार भी है।....
समझनेवाले समझ गए, ना समझें वो अनाडी है।)
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
On Wed 4 Apr, 2018, 2:18 PM Vinodkumar Mahajan, <mahajanv326@gmail.com> wrote:
क्या जमाना भी आ गया।------------------------------- क्या कलियुगी उलटाजमाना भी आ गया।कौरव ही अबपांडवों को कौरवकहने लगे।शपथपत्र पर राम कोकाल्पनिक कहनेवाले भी अब रामनामजपने लगे।रामसेतु काल्पनिक बोलनेवाले ही अबरामजी की पूजाकरने लगे।मंदीरों को बुरा कहने वाले भी अबजनेऊ पहनकरमंदीर मंदीर भटकने लगे।मतों की लालच मेंसत्ता संपत्ति पाने के लिए, अब नौटंकी कासहारा लेने लगे।हे मेरे राम अब तुहीइनको बचाले।रामराम।रामराम।राममंदिर के विरोध मेंकोर्ट में लडने वाले भीरामभक्ति का नाटककरने लगे।क्या जमाना भी आ गयाउल्टा चोर हीकोतवाल को डांटने लगे।------------------------------ विनोदकुमार महाजन।
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