घर तो जायेंगे ही!!!

फेसबुक,व्हाटस्अप ग्रुप तो बहुत बनते है।हेलो,हाय के मेसेज,गुड मोर्नींग,गुड नाईट तो चलता रहता है।कोई लेख लिखता है,कोई कविता।कभी राजकीय तो कभी सामाजीक विश्लेशन।अनेक मनोरंजक विडीओ ओडियो।
मगर कुछ सालों पहले वास्तव जीवन में जो मित्रत्व,प्रेम,भाईचारा,आत्मीयता थी,सुख दुख बांटने का जो आनंद था,वो आनंद सचमुच इस "नेट"मैत्री में नही रहा।सच्ची बात है ना?
मुझे तो हमेशा ऐसा लगता है की मेरे ग्रुप के सभी दोस्त मेरे घर आयें,मैं उनके घर जावुं,मस्त हंसी मजाक करके,एक दूसरे का सुख दुख बांट ले।एक दुसरे को उच्च कोटी का ईश्वरीय आनंद दे।
स्वार्थ,मोह का अंधेरा अती बढ रहा है।रीश्तों नातों में तो तनाव(कली)बढता जा रहा।मन की दिवारें बढती जा रही है।रीश्ते तो नाम से ही रह रहे है।
एक पुरानी कहावत है,
"आंस का बाप,निरांस की मां,होते की बहन,जोरु साथ,पैंसा गांठ और....
निदान का दोस्त।"
मतलब सुखदुख में साथ देने वाला,और हमेशा खरा उतरने वाला,"निदान का दोस्त।"साथ हंसने खेलने वाला,सुखदुख में साथ देनेवाला,मियां बिवी,बाप बेटे के झगडे में साथ देनेवाला,अश्रु पोंछने वाला,पिठ पर हाथ रखकर (संकटो में)मानसिक आधार देनेवाला,आर्थीक तंगी में धैर्य देकर,आर्थीक आधार देने वाला,दुख में रोने वाला,ऐसा यार-दिलदार,"निदान का दोस्त।"जी हां।निदान का दोस्त मित्रों।क्या बनोगे आप मेरा निदान का दोस्त,यारों?
कभी खुशी,कभी गम ऐसे दुनीया के दो दिन के मेले में,बस्स.....और चाहिए ही क्या?चाहे सुख दुख कितना भी हो,यारी-दोस्ती तो पक्की होनी चाहिए।कृष्ण सुदामा जैसी।स्वार्थ के लिए दोस्ती का नाटक,कपट,छल ऐसी दोस्ती नही हो सकती।जान को जान देनेवाली दोस्ती चाहिए।शुध्द,पवित्र,निष्पाप,निष्कलंक।शुध्द और पवित्र दो निस्वार्थ आत्माओं कि दिव्य अनुभूती।अरे भगवान भी तरसता है ऐसी दोस्ती को।हम इंसान क्यों नही तरसेंगे???
तो ग्रुप के सभी यारों,दोस्तों,शुरु करें ऐसी दोस्ती?बनेंगे मेरे दोस्त?"निदान का दोस्त!!!???"
हरी ओम।😊🙏
***आप सभी का एक सच्चा दोस्त,
विनोदकुमार महाजन।

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