कलियुग में दुष्टों के कंठों में जहर होता है।

कलियुग,
बडा भयंकर और विचित्र होता है।अच्छे और सच्चे,साफ मन के व्यक्तीयों के साथ हमेशा बूरा होता है।और दुष्टों को अच्छे अनुभव आते है।
और विषेशत: घोर कलियुग में दुष्ट ही प्रभावशाली रहते है।
दुष्टों के कंठ में तो सुष्टों के प्रती हमेशा जहर ही भरा रहता है।
इसिलए दुष्ट व्यक्ति सज्जन व्यक्तीयों को हमेशा प्रताड़ित करते रहते है,अपमानित करते रहते है,बुरा बोलते रहते है।और इसिमें ही दुष्टों को अत्याधिक आनंद मिलता है।शब्दों के जहरीले बाण छोडकर सज्जनों को हमेशा परेशान करना ही दुष्टों का धंदा रहता है।
परनिंदा, परपीड़ा, परदु:ख देने में ही ऐसे पापियों का हमेशा आसुरिक आनंद मिलता है।
और सज्जन भी ऐसे भयंकर जहरर से घायल हो जाते है।और दुष्ट, मूर्ख तथा विकृत लोगों से हमेशा दूर रहते है ,बचके रहते है।
दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात यह है की,अगर एक दुष्ट का हम विरोध करेंगे तो उस दुष्टात्मा की शक्ति और बढ जाती है।उल्टा उस दुष्ट का साथ देने के लिए और सौ पापात्में एक होते है और सत्यवादियों को,सज्जनों को और प्रताडित करते रहते है।
मगर मौन रहकर हमारी अंतरशक्ती बढाने से दुष्टात्में मजबूर हो जाते है।और सज्जनों को पिडा देने के मौके तलाशते रहते है।
मगर बुध्दिमान सज्जन, दुर्जनों को ऐसा मौका ही मिलने नही देते है।
नितदिन, हरपल,जगह जगह पर ऐसा भयंकर अनुभव तो घोर कलियुग में तो मिलता ही रहेगा।
मौन और शांती, आत्मसंतुष्टि और ईश्वरी साधना द्वारा ही अती भयंकर दुष्टों को भी निरूत्तरीत किया जा सकता है।
अतएव,
भाईयों, दुष्टात्में, मूर्ख, विकृत और पापियों से हमेशा बचके ही रहना।हमारे प्रगति में ऐसे दुष्ट सदैव बाधाएं उत्पन्न करते रहते है।
ऐसे विकृत और समाज विघातक वृत्तियों से और शक्तीयों से बचकर आगे जाना और उत्तरोत्तर प्रगति का आलेख बढता ही रखना यही हमारा कौशल होता है।
हरी ओम।
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--  विनोदकुमार महाजन।

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