क्या हिंदू समाज ,........ संवेदनशुन्य बनता,... जा रहा है???
अनेक पिढियों से,मुगल,अंग्रेज जैसे अत्याचारीयोंसे अन्याय सहते सहते,क्या हिंदू समाज संवेदनशुन्य बन गया है?कितने भी अन्याय,अत्याचार करो,हम सहते रहेंगे,क्या ऐसी ही हिंदू समाज की धारणा बन गई है?क्या.हिंदूओं के मन भी मर गए है?अन्याय अत्याचार का विरोध करने की,क्षमता ही समाप्त होती जा रही है?हमारे धर्म की,देवी देवताओं की विटंबना,विडंबन होते देख कर भी हम मौन क्यों और कैसे बैठ सकते है?हमारे ही धर्म के कुछ नालायक लोग जब हमारे ही धर्म के खिलाप बुरा कहते है,तो हम उन हरामखोर और गद्दारों का विरोध क्यों नही कर सकते?
क्या हो गया है हमें?आपस में लडने के लिए,जाती पाती की लडाई के लिए तो हमें भरपूर जोश क्यों पैदा होता है?क्या हम ऐसे हीआपस में लडकर शत्रु को भी बडा करने की,और खुद समाप्त होने की कु-निती तो नही खेल रहे है?और कितने दिनों तक ये न्यारा खेल चलता रहेगा?कितने दिनों तक हम लडते रहेंगे?और दुसरों का अती अत्याचार हम और कितने दिनों तक सहते रहेंगे?स्वार्थ,अहंकार को छोडकर देश के लिए,संस्कृती के लिए,मानवता के लिए कब एक हो जायेंगे।अरे,भगवान आयेगा तो ऐसी स्थिती देखकर वो भी भाग जायेगा।या फिर हम ही उसे भगाएंगे।जी हां।सचमुच में इतनी बुरी हालत पैदा हो गई है।कौन जिम्मेवार है इसको?क्या संस्कृती,सभ्यता,सच्चाई,ईन्सानि यत डूबने तक का हम इंतजार करेंगे?आँखे खोलो।हैवानियत चारों तरफ से हमें धिरे धिरे घेर रही है।और हम मौन और शांत बैठे है।जोहमे सच्चाई का रास्ता दिखा रहा है,आज हम उसके ही खिलाप षड्यंत्र कर रहे है।हम समय से पहले नही जागेंगे तो????अनर्थ निश्चीत होगा।हमारे संस्कृती को समाप्त करने के सपने देखने वाले,खेल करने वाले,बाहर के भेडिएं और अंदर के आस्तीन के साप धिरे धिरे उनके षड्यंत्र में वो कामयाब होते रहे है।हम विरोध नही करेंगे,सोते रहेंगे,आपस में ही मेरा-तेरा,सत्ता-संपत्ती के लिए लडते रहेंगे तो????आगे और क्या लिखुं?आप ही सोचिए।समय तेजी से बढ रहा है।उसी रफ्तार से षड्यंत्र कारी हमें समाप्त करने के मौके ढुंड रहे है।अगर हैवानियत की हार और ईश्वरी सिध्दांतोकी,ईन्सानियत की,सच्चाई कीजीत चाहते हो तो,स्वार्थ,अहंकार,दंभ को त्याग कर एक हो जाओ।जाती पाती की घिनौनी राजनिती से बहुत बडा धर्मसंकट पैदा हुआ है।हैवान कभी कुट निती से,तो कभी सामने से वार कर रहा है।अब तो हमे जागना ही पडेगा,एक होना ही पडेगा।अत्याचार का विरोध भी करना पडेगा।और जीतना भी होगा।रोने के लिए नही,तो केवल और केवल जीतने के लिए ही हम पैदा हुए है।अब,....अभी से,......देश में,......और,.......विश्व में भी,........
एक ही नारा गुंजना चाहिए,.........
ज य हिंद।जय हिंद।और,...जय हिंद।
...जागो।उठो।कार्यसिध्द बनो।
हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।
क्या हो गया है हमें?आपस में लडने के लिए,जाती पाती की लडाई के लिए तो हमें भरपूर जोश क्यों पैदा होता है?क्या हम ऐसे हीआपस में लडकर शत्रु को भी बडा करने की,और खुद समाप्त होने की कु-निती तो नही खेल रहे है?और कितने दिनों तक ये न्यारा खेल चलता रहेगा?कितने दिनों तक हम लडते रहेंगे?और दुसरों का अती अत्याचार हम और कितने दिनों तक सहते रहेंगे?स्वार्थ,अहंकार को छोडकर देश के लिए,संस्कृती के लिए,मानवता के लिए कब एक हो जायेंगे।अरे,भगवान आयेगा तो ऐसी स्थिती देखकर वो भी भाग जायेगा।या फिर हम ही उसे भगाएंगे।जी हां।सचमुच में इतनी बुरी हालत पैदा हो गई है।कौन जिम्मेवार है इसको?क्या संस्कृती,सभ्यता,सच्चाई,ईन्सानि
एक ही नारा गुंजना चाहिए,.........
ज य हिंद।जय हिंद।और,...जय हिंद।
...जागो।उठो।कार्यसिध्द बनो।
हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।
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