*प्रेम ? मत करिए !!* ✍️ २६५५ 🩷🩷🩷🩷🩷 प्रेम.... कितना पवित्र शब्द....!! जो स्वयं ईश्वर के ह्रदय से ही उत्पन्न होता है ! वैसे तो प्रेम हर एक सजीव प्राणी तो करता ही है ! है ना साथियों ? संवेदनशील प्राणी की प्रेम की परिभाषा कुछ अलग होती है ! और ? संवेदनशून्य प्राणी की अर्थात ह्रदयशून्य या फिर पत्थरदिल के नजरों से अलग ! वैसे तो प्रेम कोई भी , कभी भी कर सकता है ! बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ! ईश्वर से , सद्गुरु से , पशुपक्षियों से , हर सजीवों से भी तो प्रेम किया जाता है ! प्रेम निरपेक्ष भी होता है ! प्रेम मतलबी भी हो सकता है ! हर एक का अंदाज अलग अलग ! मगर आज के कलियुग के भयंकर माहौल में , मतलब की दुनियादारी में , सचमुच में ? पवित्र , निरपेक्ष , निर्वाज्य प्रेम मिल भी सकेगा ? लगभग नामुमकिन ! मतलब की दुनिया में , प्रेम में भी , स्वार्थ , अहंकार और मोह छूपा हुआ होता है ! तो ऐसे माहौल में सचमुच में निरपेक्ष , संपूर्ण समर्पित , सच्चा प्रेम भी मिल सकेगा ? विशेषत: मनुष्य प्राणीयों से ? लगभग असंभव ! पशुपक्षियों से प्रेम करेंगे तो ? प्रेम ही मिलेगा ! ईश्वर से प्रेम करेंगे तो भी ? प्रेम ही मिल...