Posts

Showing posts from March, 2025

दिवानसिंग

 [11/03, 3:49 pm] Divansingh Bist, Haldwani: नमस्कार महाजन जी।    मान्यवर, विपक्षी दलों द्वारा उलूल जुलूल मुद्दों का संसद में उठाया जाना और फिर बहस कराने, सार्थक बहस में सौम्यता के साथ सम्मिलित होने के बजाय  संसद से वाक आउट करना एक असंसदीय परम्परा है जिसका नुकसान देश को भुगतना पड़ता है। विपक्ष की इस परम्परा को रोकना अति आवश्यकीय है।          मेरे विचार से जब भी विपक्ष संसद से वाक आउट करे कोई भी सांसद कोई ऐसा विधेयक संसद के पटल पर रख दे जिसके पास होने से विपक्ष को हानि हो। विपक्ष न संसद से वाक आउट कर सके न बहस में बाधा डाल सके। यदि हंगामा करे तो इसका वीडियो देश भर में खूब प्रसारित किया जाए। पहले भी विपक्ष द्वारा वाक आउट किए जाने पर कई विधेयक लोक सभा में पारित किए जा चुके हैं। [11/03, 4:03 pm] vinodkumarm826: दिवानसिंगजी आपके विचार मोदीजी तक पहुंचाने का मेरा प्रयास रहेगा  आपके विचारों में काफी सच्चाई है  👍🙏

चारों ओर से

 चारों ओर से अ - धर्मींयोंपर चारों ओर से टूट पडने से पहले उसकी अदृश्य रूप से चारों ओर से बाँधी कर लो ! फिर सौ प्रतिशत जीत धर्म की ही है !! अ - धर्म का नाश हो ! धर्म की जयजयकार हो ! गीतामाता का उपदेश हो ! गायत्री माता का नितदिन जाप हो ! गौमाता की रक्षा हो ! गंगामैय्या की जयजयकार हो ! सत्य की जीत हो ! अ - सत्य का नाश हो ! संपूर्ण धरती पर सत्य सनातन धर्म की जयजयकार हो ! ईश्वरी सिध्दांतों की जीत हो ! हाहाकारी हैवानियत का सदा के लिए नाश हो ! चलो हम सभी भगवे के एकछत्र के निचे आते है ! संपूर्ण विश्व में वैश्विक महाक्रांति का शंखनाद करते है ! विश्व मानव को जगाते है ! जय श्रीराम ! जय श्रीकृष्ण ! हर हर महादेव ! विनोदकुमार महाजन

लोकं चालली पळून

 परदेशात लोकं ? चालली पळून ?? ✍️ २६११ 🤔😳🤔😳🤔😳 प्रोग्रेस, प्रगति याच्याविषयी ब-याचं लोकांना कांहीही घेणंदेणं नसतं. फक्त लाथाळ्या , लाथाळ्या आणी लाथाळ्या. आयुष्यभर लाथाळ्या अन् एकमेकांच उणदुणं काढणं. प्रोग्रेस साठी शून्य प्रयत्न. आयुष्यभर फक्त द्वेष, मत्सर ,हेवेदावे, निंदा,नालस्ती ,कुटील कारस्थान यांनीच अख्ख जीवन भरलेलं. कर्तृत्व ? शून्य ! अन् कुणी पुढे चालला , स्वकर्तृत्वाने मोठा व्हायला लागला की ? त्याला सहकार्य सोडाच... त्याचेच पाय ओढणं , त्याला बदनाम करणं,त्याला अपमानास्पद वागणूक देणं, त्यालाच स्वार्थी, मतलबी, ढोंगी म्हणणं.... हेच चाललंय का हो अख्खा देशात ? अन् हिंदू समाजात ? म्हणूनच हिंदू अन् देशसुध्दा मागं आहे का हो ? घरोघरी मातीच्या चुली ? ( स्साँरी...घरोघरी लोखंडी गँस ?...कारण काळ बदललायं ना ? चुली गेल्या अन् गँस आला ? ) डोकं खरंच चक्रावून जातं ना असल्या भयंकर प्रकारानं ? कांहीच सुचत नाही. स्वतः पुढं जायचं नाही. दुस-याला पुढं जावु द्यायचं नाही. पुढ जाणाराला रात्रंदिवस दुषण देऊन छळतं रहायचं ? त्याला एकट्याला तरी आनंदाने जगु द्या ना रे बाबांनो ? खरंच , आम्ही कधी सुधारणार ?...