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Showing posts from July, 2020

मेरे प्यारे हिंदु भाईयों...।

मेरे प्यारे सभी हिंदु भाईयों...। -----------------------------–------- संपूर्ण विश्व में फैले हुए, देशविदेश के मेरे प्यारे सभी हिंदु भाईयों, ईश्वर को पूजनेवाले, अनेक मत - पथ - पंथो में,अनेक जाती - जनजातीयों में,मनभेद - मतभेद वाले भाईयों, अनेक राजकीय पार्टीयों में बिखरे हुए मेरे भाईयों, संस्कृती पूजक,मानवताप्रेमी,गौमाता प्रेमी,माता भारती तथा माता धरती प्रेमी,सण - उत्सवों को बडे धूम धाम से मनाने वाले.... मेरे प्यारे प्यारे सभी भाईयों, धर्म रक्षा,संस्कृती रक्षा,मानवता की रक्षा,मंदिरों की रक्षा,आदर्श सिद्धातों की रक्षा,कुदरत तथा ईश्वरी कानून की रक्षा,पेड - जंगलों की रक्षा... के लिए.... सभी मनभेद - मतभेद, सभी राजकीय मतभेद, सत्ता - संपत्ती का मोह, धन - वैभव का मोह, छोडकर, संगठीत बनो। हमारा आदर्श ईश्वरी सिध्दांतों पर आधारित चलनेवाला, मानवतावादी धर्म आज राष्ट्रविघातक तथा अराजकतावादी,धर्मद्रोही, हाहाकारी,राक्षसी शक्तियों द्धारा, बडी चालाकी से तथा कुटिल निती द्वारा घेरा जा रहा है।सदियों से यह सिलसिला चलता आ रहा है। आक्रमणकारी, लुटेरे, अत्याचारी, क्रूर तथा हिंसक राष्ट्र द्रोही बडी चालाकी से हमें

न जाने कहाँ गये वो दिन...???

न जाने कहाँ गये वो दिन...। न जाने कहाँ गये वो दिन ? याद आते है वही पूराने सुनहरे दिन। इंन्सान तो इंन्सान था, अब सचमुच में इंन्सान, इंन्सान ही रहा है क्या ? मगर अब तो इंन्सानियत गई कहाँ ? इंन्सानियत मर गई,हैवानियत जाग गई। प्रभु की सुंदर धरती पाप के आतंक से काँप गई। न जाने कहाँ गये वो दिन...? जब आदमी आदमी पर सच्चा प्यार करता था। घर आँगन भी प्यारा प्यारा लगता था। अब सारे रिश्ते नाते रूठ गये। पैसों के लालच में,मायावी बाजार में सबकुछ लुट गये। याद आते है वो बिते दिन जहाँ ममता थी,एकता थी, हँसींखुशी का माहौल भी जबरदस्त था। भाईबहनों के प्यार से आँगन सारा फला फुला था। न जाने कहाँ गये ओ दिन ? न जाने कहाँ गये ओ दिन ? विनोदकुमार महाजन।

निगेटिविटी

निगेटिव एनर्जी को पोझिटिव एनर्जी में .... कैसे बदले...??? ------------------------------ निगेटिव एनर्जी !!! बहुत ही भयंकर और खतरनाक समस्या। ऐसे भयंकर बिमारी से,भयंकर शक्ती से जो भी ग्रस्त है... उसी घर में या फिर समाज में भी भयंकर यातनाएं तथा पिडाएं पैदा होती है। इसिसे ही उसी घर में,समाज में नैराश्य फैल जाता है... और नैराश्य का हल युं ही नही मिलता है। बिमारी, कर्जा,झगडा,आपसी कलह,कौटुंबिक कलह,गलतफहमीयाँ,व्यसनाधीनता ऐसे अनेक प्रकारों से निगेटिव एनर्जी उत्पन्न होती है। तो....ऐसे निगेटिव एनर्जी को क्या सचमुच में पोझिटिव एनर्जी में बदला जाता है? जी हाँ,बिल्कुल। कैसे...??? (१)निगेटिव सोच रखनेवालों से दूरी रखे। (२)ईश्वरी चिंतन करे। (३)पोझिटिव सोच रखने वालों से दोस्ती बढायें। (४)जप जाप्य,गुरूमंत्र का जाप करें। (६)मठ-मंदिरों में,जंगलों में जाने से भी निगेटिव शक्तीकम होती है,और पोझिटिव शक्ती बढ जाती है। (७)हमेशा विनावजह के झगड़े करनेवालों से सदा दूर रहे। (८)देवी देवताओं पर विश्वास न करनेवालों से दूर रहे। (९)धर्म ग्रंथों का पारायण करें।धार्मिक किताबों का पठन करें। (१०)शौर्यकथाओं का पठन करें। (११)यो

शक्तीमान भीम...।

सनातन प्रेमी,सत्य प्रेमी,कृष्ण भक्त शक्तिमान भीम……पांडवों का भाई.....भीम....!!! ————————————– महाभारत के अनुसार भीम महापराक्रमी तथा शक्तिशाली थे। सभी पाण्डवों में वे सर्वाधिक बलशाली और श्रेष्ठ कद-काठी के थे एवं युधिष्ठिर के सबसे प्रिय सहोदर थे। भीमसेन पौराणिक बल का गुणगान पूरे काव्य में किया गया है।  जैसे:- "सभी गदाधारियों में भीम के समान कोई नहीं है और ऐसा भी कोई जो गज की सवारी करने में इतना योग्य हो और बल में तो वे दस हज़ार हाथियों के समान है। युद्ध कला में पारंगत और सक्रिय, जिन्हें यदि क्रोध दिलाया जाए जो कई धृतराष्ट्रों को वे समाप्त कर सकते हैं। सदैव रोषरत और बलवान, युद्ध में तो स्वयं इन्द्र भी उन्हें परास्त नहीं कर सकते।" वनवास काल में इन्होने अनेक राक्षसों का वध किया जिसमें बकासुर एवं हिडिंब आदि प्रमुख हैं एवं अज्ञातवास में विराट नरेश के साले कीचक का वध करके द्रौपदी की रक्षा की। यह गदा युद़्ध में बहुत ही प्रवीण थे एवं द्रोणाचार्य और बलराम के शिष़्य थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में राजाओं की कमी होने पर उन्होने मगध के शासक जरासंध को परास्त करके ८६ राजाओं को मुक्त कराया।

अपमान

...  अपमान  ... ------------------------------- अगर किसीने हमारा जानबूझकर अपमान किया तो हमारे अंदर आग सी लग जाती है।अपमान सहा नही जाता है।इसीलिए अपमान का भयंकर जहर हजम करने के लिए अपनी आत्मा में जबरदस्त शक्ती चाहिए। जिसका अपमान किया गया है वह व्यक्ति प्रतिशोध की आग में धधकती रहती है,और वक्त मिलते ही अपमान करनेवालों.का प्रतिशोध लेकर मन को ठंडक दी जाती है। अपमान का प्रतिशोध लेना यह केवल मनुष्यों में ही नही तो अन्य अनेक सजीव प्राणियों में भी देखा जाता है। मगर... जिसे जीवन की लडाई जीतनी ही है,उसे ठंडे दिमाग से अपमान का जहर हजम करके आगे जाना पडता है। नही तो मंजिल तक पहुंचने में अनेक बाधाएं उत्पन्न हो सकती है।और प्रतिशोध की अग्नि में तडपते हुए हमारी मंजिल भी हाथों से छूट सकती है। अगर अपमान करनेवाले का प्रतिशोध लेना ही है तो बहुत बडा नाम कमाकर भी ले सकते हो।और हमारी श्रेष्ठता, योग्यता तथा अपमान करनेवाले की औकात,झिरो लायकी भी दिखा सकते हो। अपमान यह एक भयंकर जहर के समान होता है। विषेषतः यह जहर कलियुग में दुष्टों के कंठों में सदैव रहता है।कोई सज्जन सामने आये,या किसिकी प्रगति हो रही हो

सत्पुरुष और साँप

सत्पुरुष और साँप...। -------------------------------------- दोस्तों, यह एक बोधकथा है। दो विरूद्ध वृत्तियों की कहानी। दोनों वृत्तीयां भी ईश्वर निर्मीत। बडा विचित्र संयोग है यह। ईश्वर की अद्भुत लिला। अदृष्य ब्रम्हांड का रचीयेता भगवान और उसीकी लिला बडी बडी ही विचित्र है। दो विरूद्ध वृत्तीयां, दो विरूद्ध शक्तीयां खुद भगवान ने निर्माण की। और मजे की बात देखो, सृष्टि से निर्मीती से सृष्टि के अंत तक का उनका संघर्ष भी बडा विचित्र है। सज्जन - दुर्जन। देव - दानव। सत्य - असत्य। अमृत - जहर। और ठीक इसी प्रकार से साधुत्व और सैतानियत। साधुत्व में दया,क्षमा,शांती,परोपकार, संयम,अहिंसा, मानवता,प्रेम इत्यादी ईश्वरी गुणसंपन्नता होती है। तो सैतानियत में क्रौर्य,अशांति, अमानवीयता,हिंसा,धोकाधड़ी, कपट,जहरीला दुष्ट और हाहाकारी आचरण और स्वार्थ भाव जैसे राक्षसी गुण होते है। सत्पुरूष और साँप यह भी बडी विचित्र, ईश्वर निर्मीत दो विरूद्ध वृत्तीयां होती है। पहली परोपकारी तो दुसरी कृतघ्न। मानवी समुह में भी ऐसी दो विरुद्ध वृत्तीयां, हरजगह,अनेक घरों में दिखाई देती है। और परिणाम स्वरूप...? द

चिंता मत कर

ये दिन भी जायेंगे प्यारे, चिंता मत कर...!!! यारों, जींदगी में हर एक को बुरे दिनों का सामना कभी ना कभी करना ही पडता है। ऐसे मुसिबतों के समय में हिम्मत कभी भी हारना नही। बुलंद हौसला और बुलंद इरादा लेकर, हर पल,हर घडी आगे बढना है। " ये भी दिन जायेंगे दोस्त ", ऐसा संवाद खुद के मन को नितदिन करना है। मन को यह भी कहना है की, दिन बुरे है...जींदगी नही। बुरे दिन जाते ही जरूर अच्छे दिन तो आ ही जायेंगे। बुरे समय में हमारा कोई भी नही होता है। सिर्फ सद्गुरू और ईश्वर ही रखवाले होते है। रिश्तेनाते सब भाग जाते है। सुख के सब साथी,दुख में ना कोय... यह पंक्ती भी बार बार याद आती रहती है। इसिलिए हिम्मत ना हारना,ईश्वर पर पूरा भरौसा रखकर आनंदी जीवन आरंभ होने का इंतजार करना। और आनंदी जीवन जरूर शुरू होंगे ही ऐसा दिव्य संकल्प भी करना। हमने कभी किसी का बुरा किया ही नही,सपनों में भी किसी का बुरासोचा तक नही ? तो हमारा क्यों और कैसे बुरा होगा ? ईश्वर भी हमें सहायता करेगा। प्रारब्ध गती से मिले हुए दुखों से एकदिन जरूर छुटकारा मिलेगा ही, ऐसा आशावाद रखकर ही हर पल,हर दिन आगे आगे

हिंदुत्ववादी

क्या हिंदुत्ववादी, सचमुच में जातीयवादी होते है...??? --------------------------------------- भाईयों, ईश्वरी सिध्दांतों पर चलकर, मानवता का जयघोष करके,पशुपक्षीयों सहीत सभी पर सच्चा और निस्वार्थ प्रेम करने पर भी, इस बहुसंख्यक आदर्श हिंदुओं के प्रदेश में रहकर, कुछ राक्षसी वृत्तियों ने हिंदुत्व को ही बदनाम करने की आजतक पूरजोर कोशिश की है।और इसी का एक हिस्सा, यह है की हिंदुत्ववादियों को जातीयवादी बताना। सही है ना ? उल्टा चोर कोतवाल को डाँटें। चोराच्या उल्ट्या बोंबा। चोर तो चोर,अन् वर सिरजोर। अब जातीवाद करनेवाले ही हमें सिखा रहे है की ,हम ही जातीयवादी है। क्या भयंकर उल्टा और कलियुगी जमाना भी आ गया यारों। अरे बाबा,सभी में एक समान आत्मतत्व देखकर, सभी को ईश्वरी अंश मानकर,सभी पर दिव्य प्रेम करनेवाले, गाय को भी माता माननेवाले और साँप को देवता समझकर पूजनेवाले, आखिर हम जातीयवादी कैसे हो गये भई ? जरा बतायेगा कोई तो भी ? मैं इसीलिए मेरा खुद का उदाहरण देता हुं।मैं देहात में रहनेवाला हुं।ग्रामीण संस्कृति में बडा हुवा हुं। और ग्रामीणों में होता यह है की,भले ही वहाँ आर्थिक विकास का स्