मेरे जीवन का सार्थक हुवा
अनेक सालों तक प्रारब्ध गती के आग में जलता था, स्वकियों की आत्यंतिक पिडा से,सामाजिक - सामुहिक उत्पिडन से ,परेशान था, फिर भी मैंने मेरे सद्गुरू ने बताया हुवा आदर्श सिध्दांतों का रास्ता नही छोडा ईश्वर ने भी मेरे सत्व की कठोर परिक्षा ली अनेक भयंकर जहर मैंने हजम किए,मगर सत्य का - सिध्दांतो का,इमानदारी का रास्ता मैंने नही छोडा और आज मैंने मेरे सद्गुरू को स्वर्ग में भी आनंदीत किया क्योंकी सत्य के लिए मैंने खुद होकर बडे आनंद से जहर का स्विकार किया और अमृत का भी त्याग किया मेरे सद्गुरु को मैंने आत्यंतिक समाधान दिया सद्गुरु के चरणों में मैंने मेरा संपूर्ण जीवन समर्पित किया और मेरे जीवन का भी सार्थक हुवा आज मैं कृतकृत्य हो गया हरी ओम् विनोदकुमार महाजन